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भगवतीसो मन् अमुरकुमारप्रकरणे जघन्यतः स्थितिर्दशवर्ष सहस्रामिका उत्कृष्टतः सातिरेकसागरोपमा इह तु स्थितिर्जघन्यतो दशवर्षसहस्रामिका उत्कृष्टतः पल्योपमे त्येतावानेव भेद उभयोः प्रकरणयोरिति । 'सेसं तदेव' शेषम्-स्थिस्यतिरिक्त सर्वमपि नथैव-असुरकुमारप्रकरणपठितमेवेति भावः । ___अय ज्योतिष्कदेवानुत्पादयितुमाह-'जइ जोइसियदेवेहितो' इत्यादि, 'जइ. जोइसियदेवेहितो उववति' हे भदन्त ! यदि ज्योतिष्कदेवेभ्य आगत्य पृथिवीकायिकेपूस्पधन्ते तदा-'किं चंदविमाणजोइसियदेवेहितो उववज्जंति' किं चन्द्रविमानज्योतिष्कदेवेष आगत्योत्पद्यन्ते अथवा-'जाव ताराविमाणजोइ. सियदेवेस्तिो उववज्जति' यावत् ताराविमानज्योतिष्कदेवेभ्य आगत्योत्पपल्योपम की है, असुरकुमार के प्रकरण में ऐसी स्थिति नहीं है, वहां तो यद्यपि स्थिति जघन्य से दशहजार वर्ष की है, परन्तु उत्कृष्ट से यह सातिरेक एक सागरोपम की है, इस प्रकार असुरकुमार के प्रकरण गत स्थिति की अपेक्षा इस प्रकरणगत स्थिति में अन्तर आता है, 'सेसं तहेव' स्थिति से अतिरिक्त और सब कथन असुरकुमार के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही हैं, अब ज्योतिष्कदेवों की वक्तव्यता कहते है-'यहां गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'जइ जोइसियदेवेहितो उववज्जति' हे भदन्त ! यदि ज्योतिष्कदेवों से आकर के पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होते हैं नोकिं चंदविमाणजोइसियदेवेहितो उवज्जति' क्या वे चन्द्रविमान ज्योतिष्कों से आकरके वहां उत्पन्न होते हैं अथवा-'जाव ताराविमाणजोइ. सियदेवेहितो उववज्जति' यावत् ताराविमान ज्योतिष्कों से आकरके ઉત્કટથી એક પલ્યોપમની છે અસુરકુમારના પ્રકરણમાં તેઓની સ્થિતિ જઘન્યથી દસ હજાર વર્ષની કહી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે સાતિરેક-કંઈક વધારે એક સાગરોપમની કહી છે. આ રીતે અસુરકુમારોના પ્રકરણમાં કહેલ સ્થિતિની मामतमा पY भावे छे. 'सेसं तहेव' स्थितिना ४थन शिवायनु माडीनु તમામ કથન અસુરકુમારના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. હવે ગૌતમસ્વામી प्रसुन मे पूछे छे , 'जइ जोइसियदेवेहितो उववज्जति' 3 मान्ने દેવભવ યતિષિક દેવોમાંથી આવીને પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે 'किं चंदविमाणजोइसियदेवेहि तो उववज्जंति' शुतो यद्रविमान याति स्वामी मावीर त्यi G५न्न थाय छ ? है 'जाव ताराविमाणजोइमियदेपेदिनी उववज्जति' यावत् ॥२॥ विमान याति हवामाथी मावाने या
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫