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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० २० उ० ८२० १ कर्मभूम्यादिकनिरूपणम् ६१ निरूप्य तद्विरुद्धामकर्मभूमि संख्यया निरूपयितुमाह-'कइ णं' इत्यादि, 'कई गं भंते ! अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ' कति खलु भदन्त ! अकर्मभूमयः प्रज्ञप्ताः कर्मभूमेः स्वरूपं प्रथमं निरूपितम् तद्विरुद्धेयमकर्मभूमिः कियतीति प्रश्नः। भगवानाह'गोपमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तीसं अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ' त्रिंशत् अर्मभूमयः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तथा 'पंच हेमवयाई' पश्च हैमवतानि पंच हेरन्न वयाई' पञ्च हैरण्यवतानि, 'पंच हरिवाप्ताई' पञ्च हरिवर्षागि, 'पंच रम्मगवासाई' पञ्च रम्यकर्माणि 'पंच देवकु राई' पञ्च देवकुरवः, 'पंच उत्तरकुराई' पश्चोत्तरकुरवः । दो ऐरवतक्षेत्र इस प्रकार से ये पांच ऐश्वतक्षेत्र हैं । इसी प्रकार से जम्बूद्वीप संबन्धी एक महाविदेह, धातकीखंड सम्बन्धी दो महाविदेह और पुष्कराध सम्बन्धी दो महाविदेह इस प्रकार से ये पाँच महाविदेह हैं। ये सब मिलकर पन्द्रह कर्मभूमियाँ कही गई हैं। इनसे बाकी बची हुई जितनी भूमियां-क्षेत्र हैं वे सब अकर्मभूमियां हैं और इनकी संख्या ३० है यही विषय अब आगे स्पष्ट लिखा जाता है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कह णं भंते ! अकम्मभूमीमो पण्णत्ताओ' कर्मभूमि से विरुद्ध अकर्मभूमियां कितनी कही गयी हैं ? तो इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तीसं अकम्मभूमी ओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! कर्मभूमि से विरुद्ध अकर्मभूमियां तीस कही गई हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'पंच हेमवयाई, पंच हेरन्नवयाई, पंच हरियासाई, पंच रम्भगवासाई, पंच देवकुराई, पंच उत्तरकुराई' पांच हैमवत, ક્ષેત્ર છે. એજ રીતે જંબુદ્વીપ સંબંધી એક મહાવિદેહ, ધાતકી ખંડ સંબંધી બે મહાવિદેહ અને પુષ્કરાર્ધ સંબંધી બે મહાવિદેહ આ રીતે આ પાંચ મહાવિદેહ થાય છે. આ તમામ મળીને કર્મભૂમિ પંદર કહેલ છે. તેનાથી બાકી બચેલી જેટલી ભૂમિ-ક્ષેત્ર છે. તે તમામ અકર્મભૂમી છે. અને તેની સંખ્યા ૩૦ થાય છે. આ તમામ વિષય હવે આગળ સ્પષ્ટતાપૂર્વક કહેવામાં આવે છે.-આ સંબંધમાં ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે'कइ णं भंते ! अकम्मभूमीओ पण्णताओ' भूमिया १ि३६ मेवी मम'. ભૂમિ હે ભગવદ્ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रस छ,-'गोयमा ! तीसं अकम्मभूमीओ पण्णत्ताओ' है गौतम ! भ. भूभिया टी 48मभूमि ३० श्रीस ४i छ. 'त' जहा' रे सा प्रभारी छ.'पंच हेमवयाई, पंच हेरण्णवयाइं पंच हरिवासाई पंच रम्मगवासाई पंच देवकुराई पंच उत्तरकुराई' पाय भक्त, पाय ९९य१त, पाय षि, पांच શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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