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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.३ स०१ नागकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ६५३ सहस्साहिइएलु' जघन्येन दशवर्ष अहलावति के नागकुमारेषु 'उकोसेणं देसूण दो पलिभोमटिइएसु' उत्कर्षेण देशोनद्विपल दोपस्थिति के पु नागकुमारेषु 'उज्जति' उत्पद्यन्ते हे गौतम ! जघन्यतो दशसहस्त्रस्थिति केषु नागकुमारेषु तथोत्कृष्टतो देशोन द्विपल्योपमस्थितिकेषु नागकुमारेषु पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञिमनुष्याः नामकुमारेषूत्पत्तियोग्याः समुत्पधन्ते इति भावः । 'एवं जहेच असुरकुमारेसु उपवज्जमाणस्स सच्चे लद्धी निरवसेसा नवसु गमएसु' एवं यथैव असुरकुमारे. पून्पद्यमानस्य संख्यतवर्षायुष्कमनुष्यस्य सैव लब्धिनिरक्शेषा नवसु गमकेषु भणितव्या, तत्र चासुरकुमारमकरणे रत्नप्रभाप्रकरणस्यातिदेशः कृत इति रत्नप्रभाप्रकरणं विलोकनीयम् । अवगाहना जघन्येनाऽङ्गुलपृथक्त्वममाणा, उत्कृष्टेन पञ्च धनुःशवप्रमाणा। 'नवरं णागकुमारट्टिई संवेहं च जाणेज्जा.' नवरं नागकुमार 'जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएसु०' वह जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है और 'उक्कोसेणं' उत्कृष्ट से 'देसूण दो पलिओवम०' वह कुछ कम दो पल्योपम की स्थितिवाले नागकुमारों में उत्पन्न होता है, एवं जहेव असुरकुमारेलु उववज्जमाणस्स सच्चेव लद्धी निरवसेसा नवस्तु गमएसु' इस प्रकार से जैसी वक्तव्यता असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य संख्यात वर्षायुष्क मनुष्य के सम्बन्ध में कही गई है वैसी ही वक्तव्यता यहां पर नौ गमकों में कहनी चाहिये, असुरकुमार प्रकरण में रत्नप्रभा प्रकरण का अतिदेश किया गया है, इसलिये रत्नप्रभा प्रकरण इसके लिये देखना चाहिये, यहां अवगाहना जघन्य से अंगुलपृथक्त्व और उत्कृष्ट से पांचसो धनुष प्रमाण है, 'नवरं णागकुमारटिइं संवेह च जाणेज्जा०' इस प्रकरण में नागकुमार की स्थिति और उनका काय दनवाससहस्सद्विइएसु०' धन्यथी इस ॥२ १ नी स्थिति नाम भामा ५-1 थाय छे. म 'उक्कोसेणं' थी 'देसूण दो पलिओवम' તે કંઈક ઓછા બે પલ્યોપમની સ્થિતિવાળા નાગકુમારમાં ઉત્પન્ન થાય છે. 'एवं जहेव असुरकूमारेसु उववज्जमाणस्स सच्चेव लद्धी निरवसेसा नवसु गमएसु' मा शत असुमाराम जपन्न वान योग्य मनुष्यना समयमा રીતે કથન કર્યું છે, એજ રીતનું કથન અહિયાં ન ગમેમાં કહેવું જોઈએ. અસુરકુમાર પ્રકરણમાં રતનપ્રભા પ્રકરણને અતિદેશ (ભલામણ) કહ્યો છે. જેથી આ કથન માટે રત્નપ્રભા પ્રકરણ જોઈ લેવું જોઈએ અર્થાત્ રત્નપ્રભાના તે પ્રકરણ અનુસારનું કથન અહિં સમજવું. અહિં અવગાહના જઘન્યથી मन थी त्रय अन्यूति (३ मा) प्रभाएर छे. 'नवर णागकुमारदिई A શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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