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________________ ४६ भगवतीसूत्रे कवि बंधे पन्नते' स्त्रीवेदस्य खलु भदन्त ! कर्मणः कतिविधो बन्धः प्रज्ञप्तः, स्त्रीवेदकर्मणो बन्धः कतिपकारक इति प्रश्नः, उत्तरमाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'तिविहे बंधे पनते' त्रिविधो बन्धः प्रज्ञप्तः, 'एवं चैव' एवमेव जीवमयोगबन्धोऽनन्तरबन्धः परम्पराबन्धश्रेति । 'असुरकुमाराणं भंते ! इत्थीवेयस कवि बंधे पन्नते' अनुरकुमाराणां मदन्त ! स्त्रीवेदस्य कतिविधो बन्धो भवतीति प्रश्नः, उत्तरमाह - ' एवं चेत्र' एवमेव यथा सामान्यतः स्त्रीवेदस्य त्रिविधो बन्धः प्रदर्शितस्तथैव असुरकुमारस्त्रीवेदस्यापि त्रिविधो बन्धो भवतीति । 'एवं जाव वैमाणियाणं' एवं यावद् वैमानिकानाम् असुरकुमारस्त्रीवेदवत् याव संग्रह हुआ है, अब - ' इत्थीवेयस्स णं भंते । कइविहे बंधे पण्णत्ते' गौतम इस सूत्र द्वारा प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त ! स्त्रीवेद का बंध कितने प्रकार का होता है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तिविहे बंधे पन्नन्ते' हे गौतम! स्त्रीवेद का बंध तीन प्रकार का होता है । और वह जीवप्रयोगबंध, अनन्तरबंध और परम्पराबंध रूप होता है, 'असुरकुमाराणं भंते । इत्थीवेयस्स कहविहे बंधे पन्नते' हे भदन्त ! असुरकुमारों के स्त्रीवेद का बन्ध कितने प्रकार का होता है ? इस गौतम के प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभु उनसे कहते हैं-' एवं 'चेव' हे गौतम ! जिस प्रकार से सामान्यतः स्त्रीवेद का तीन प्रकार का बंध दिखलाया गया है उसी प्रकार से असुरकुमार के स्त्रीवेद का भी तीन प्रकार का बंध होता हैं, देवों में पुंवेद और स्त्रीवेद ये दो वेद होते हैं सो स्त्रीवेदके बंध को लेकर यह प्रश्नोत्तर हो रहा है, ' एवं जाव वेमाणियाणं' भंते कवि बंधे पण्णत्ते' गौतमस्वामी या सूत्रथी अलुने मे पूछे छे हैહે ભગવન્ વેદને બ`ધ કેટલા પ્રકારના હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु उडेछे - 'गोयमा तिविहे बंधे पण्णत्ते' हे गौतम! स्त्रीवेद्वना मध त्र अहारना डेल छे, तेना नाभो या प्रमाणे छेत्रप्रयेोध १, मनः तश्ञध २, अने पर परमंध 3 'असुरकुमाराणं भंते! इत्थीवेयर कवि हे बंधे पण्णत्ते' हे भगवन् असुरकुमारीने स्त्रवेदना अंध डेटा प्रहारनो होय છે ? ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નના સમાધાનમાં પ્રભુ તેઓને કહે છે કે- વ એવ હુ ગૌતમ જે રીતે સામાન્ય રીતે સ્રીવેદમાં ત્રણ પ્રકારના બંધ કહ્યો છે. એજ રીતે અસુરકુમારને વેદમાં પણ ત્રણુ પ્રકારના અંધ થાય છે. દેવામાં પુવેદ અને સ્ત્રીવેદ આ એ વેદન થાય છે. સ્ત્રીવેદને લઇને આ પ્રશ્નો तर ह्या छे. ' एवं जाव बेमाणियाणं' असुरकुमार देवाने थे रीते स्त्रीवेह શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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