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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम्
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योगस्त्रिविधोऽपि - त्रिप्रकारकोऽपि मनोयोगवचोयोगकाययोगा भवन्तीति । (९) । उपयोग रे - 'उवभोगो दविहोवि' उपयोगो द्विविधोऽपि सकाशेपयोगो sarकारोपयोगच भवतीति (१०) । संज्ञाद्वारे - 'चचारि सभाओ' चतस्रः संज्ञाः, आहारमयमैथुनपरिग्रहरूपाः (११) । कषायद्वारे - ' चत्तारि कसाया' चत्वारा कषायाः क्रोधमानमाया लोभरूपाः (१२) । इन्द्रियद्वारे पंचिंदिया' पञ्चेन्द्रियाणि-श्रोत्रचक्षुत्राणरसन स्पर्शनानि भवन्तीति (१३) । समुद्वातद्वारे - 'विन्नि समुग्धाया आदिल्ला' त्रयः वेदना कपायमारणान्तिका आदिमाः समुद्घाता भवन्तीति 'समोहया वि मरंति' समहता अपि म्रियन्ते (१४) । वेदनाद्वारे - 'वेयणादुबिहा वि' वाले होते हैं-मनोयोग वाले, वचनयोग वाले, और काययोग वाले, होते हैं उपयोगद्वार में - 'उवओगो दुविहो वि' साकार उपयोग और अनाकार उपयोग ये दोनों प्रकार के उपयोग इनके होते हैं। संज्ञाद्वार मैं- 'तारि सन्नाओ' इनके आहार भय, मैथुन और परिग्रह ये चार संज्ञाएँ होती हैं । कषाय द्वार में- चत्तारि कसाया 'चार कषाय - क्रोध, मान, माया और लोभ होते हैं । इन्द्रियद्वार में 'पंचिदिया ये श्रोत्र, चक्षु, घाण, रसन और स्पर्शन इन पाँचों इन्द्रियों वाले होते हैं । समुद्घातद्वार में - ' तिन्नि समुग्धाया आदिल्ला' आदि के वेदना, कषाय और मारणान्तिक ये तीन समुद्घात इनके होते हैं। 'समोहयाधि मरंति' ये समुद्घात करके भी मरते हैं और समुद्घात विनाकिये भी मरते हैं। वेदनाद्वार में - 'वेणा दुविहा वि' इनके शातारूप और अशातारूप दोनों प्रकार की बेदना होती है, वेदद्वार में 'बेयो दुविहो वि' इनके स्त्री वेद और ચેાગવાળા હેાય છે. મનેા ચેાગવાળા, વચન ચેગવાળા, અને કાયયેગવાળા होय छे. उपयोगद्वारभां 'उवओगो दुविहो वि' सार उपयोग भने मना કાર ઉપયાગ આ બન્ને પ્રકારના ઉપયાગ તેઓને હાય છે. ‘સ'શીદ્વારમાં 'चत्तारि सन्ना ओ' तेखाने आहार, लय, मैथुन याने परिथह थे यार संज्ञाओ होय छे. 'दुपायद्वारा ' 'चत्तारि कसाया' यार उपाय भेटते है-होष, भान, भाया, अने बोल थे यर उषाये। होय छे. 'न्द्रिय द्वारमा 'पंचि 'दया' तेथे श्रोत्र-अन, यक्षु-नेत्र, प्राणु-नासिम, रसना, कुल भने स्पर्श से पांच इंद्रिया वाणा होय हे समुद्द्धाता द्वारमा 'तिन्नि समुग्धाया आदिला ' તેઓને પડેલા એટલે કે-વેદના, કષાય, અને મારણાન્તિક એ ત્રણ સમુદ્ घात होय . ' समेोहया वि मरंति' तेथे। सभुद्धात उरीने पशु भरे छे. अने समुद्रयात अर्ध्या विना य भरे छे. 'वेदना द्वारसा' 'वेयणा दुविधा बि . ' તેઓને શાતારૂપ અને અશાતારૂપ બન્ને પ્રકારની વેદના હાય છે. વેદદ્વારમાં’
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪