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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२४ उ.२ सू०१ असुरकुमारदेवस्योत्पादादिकम् ५६१ यवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनि केभ्य आगत्योत्पद्यन्ते ? इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'संखेज्जवासाउयसनिपंचिं. दियतिरिक्ख जोणिएहितो उववज्जति 'संख्येयवर्षायुष्कसंक्षिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्यो. निकेभ्य उत्पद्यन्ते तथा-असंखेज्जवासाउयसमिपंचिंदियतिरिक्खनोणिएहितो उववज्जति' असंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्योऽपि उत्पचन्दे संख्येयासंख्येयोभयस्मादपि स्थानादागत्य असुरकुमारा उत्पधन्ते इति भावः। 'असंखेज्जवासाउयसन्निपंबिंदियतिरिक्खनोणिए णं भंते।' अस. ख्येयवर्षायुष्कसंक्षिपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए असुरकुमारेतु उववज्जित्तए' यो भव्योऽसुरकुमारेषुत्पत्तुम् ‘से णं भते' स खलु भदन्त ! 'केवइयकी आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रि रतिर्यग्योनिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं अथवा असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-गोयमा ! हे गौतम ! 'संखेन्जवासा य० जाव उवधज्नति, असं. खेज्जवासाउथ० जाव उववज्जति' संख्यात वर्ष की आयु वाले तथा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में से आकर वे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार संख्यात असंख्यात दोनों भी स्थानों से आकर के असुरकुमार में उत्पन्न होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'असंखेज्जवासा णं भंते । 'हे भदन्त ! जो असंख्यात वर्ष की आयुवाला संज्ञी पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव 'जे भविए असुरकुमारेसु उव.' जो भविक असुरकुमारों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से णं भंते ! केवइयकालटिएसु०' हे भदन्त ! ऐसा તિર્યંચ નિમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? કે અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળી સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિકેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે 20 प्रश्न उत्तरमा प्रभु छे ४-'गोयमा ' है गौतम ! 'संखेनवासाउय. जाव उववज्जति असंखेज वासाच्य जाव उववज्जंति' संज्यात આયુષ્ય વાળા તથા અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્ય વાળી સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિકે માંથી આવીને તેઓ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે સંખ્યાત અને અસં. ખ્યાત બન્ને પ્રકારના સ્થાનમાંથી આવીને અસુરકુમારો ઉત્પન્ન થાય છે. डवे गौतमस्वामी प्रसुन मे पूछे छे हैं-'असंखेज्जवासाउय० ण भाते है ભગવન અસંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા જે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ એનિपाणे। ७१ जे भविए असुरकुमारेसु० उव०' मसु२ मामा उत्पन्न याने भ० ७१ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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