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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०८ श० षष्टपृथ्वीगतजीवानामुदिकम् ५४१ इत्यादिकं सर्व प्रथमगमवदेव द्रष्टव्यमिति, 'नवरं नेरइयटिई संवेहं च जाणेज्जा' नवरं नैरयिकस्थिति संवेधं च जानीयात् जघन्येन वर्षपृथक्त्वाधिकद्वाविंशति सागरोपमाणि, उत्कृष्टतः पूर्वकोटयभ्यधिकद्वाविंशतिसागरोपमाणि इति ।। 'सो चेव उक्कोसकालटिइएसु उपबन्नो' स एव मनुष्यः उत्कृष्टकालस्थितिक सप्तमनारकेषु उत्पत्तियोग्यो विद्यते तस्य कियकालस्थितिकनारकेषु उत्पतिरिति प्रश्नः, जघन्येनोत्कृष्टेन च त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमस्थितिकेषु नारकेषु उत्पधन्ते । ते उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-हे गौतम! वे जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन और उत्कृष्ट से संख्यात एक समय में उत्पन्न होते हैं इत्यादि सब कथन यहाँ प्रथम गम के जैसा जानना चाहिये, 'नवर नेरइयट्टिइं संवेहं च जाणेज्जा' परन्तु विशेषता यहां ऐसी ही है कि यहां पर नैरयिक की स्थिति और संवेध को विचार कर कहना चाहिये-आर्थात् जघन्यस्थिति यहां पर वर्षपृथक्त्व अधिक २२ सागरोपम की है और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि अधिक २२ सागरोपम की है यह द्वितीयगम है २ 'सो चेव उक्कोसकालटिइएसु उव. वन्नो' यदि वही मनुष्य उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सप्तम नरक के नारकों में उत्पन्न होने के योग्य है तो-हे भदन्त ! वह कितने काल की स्थिति वाले सप्तम नरक के नारको में वहां उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-गौतम । वह जघन्य से ३३ सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में और उत्कृष्ट से भी ३३ सागरोपम की स्थितिवाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। રમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ! તે નારો જઘન્યની એક અથવા બે અથવા ત્રણ અને ઉત્કૃષ્ટથી એક સમયમાં સંખ્યાત પણે ઉત્પન્ન થાય છે. વિગેરે तमाम ४थन महियां पस। अममा ह्या प्रमाणे समा. 'नवरं नेरइयदिई संवैध च जाणेज्जा' परतु मडिया विशेष मे छे 8-मडिया नै२५४ સ્થિતિ અને સંવેધને વિચાર કરીને કહેવા જોઈએ અર્થાત્ અહિયાં જઘન્ય સ્થિતિ વર્ષપ્રથકૃત્વ અધિક ર૨ બાવીસ સાપરોપમની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી र अधि33 तेत्रीस सागरोपभनी छ 'सो चव उक्कोसकालदिइएस उववन्नो' र म मनुष्य कृष्ट जनी स्थितियाणा सातमा न२४ ना२. કેમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્ય હોય તે હે ભગવન ! તે કેટલા કાળની રિથતિવાળા નારકમાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે હે ગૌતમ! તે જઘન્યથી ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમની સ્થિતિવાળા રયિ. કેમાં ઉત્પન્ન થાય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ ૩૩ તેત્રીસ સાગરોપમની સ્થિતિ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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