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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०८ श० षष्ठपृथ्वीगतजीवानामुदिकम् ५३३ रोगाहणा जहन्नेणं पंचधणुपयाई शरीरावगाहना जघन्येन पश्चनुशतानि, उक्कासेण वि पंचधणुसयाई' उत्कर्षेणाऽपि पश्चधनु शतानि, जघन्योत्कृष्टाभ्यां पञ्च. धनुःश पमाणशरीरावगाहनेति, प्रमगमे जघन्यावगाहना रलिपृथक्त्वात्मिका उत्कृष्टावगाहना पश्चधनुःशतात्मिका कथिता इह तु जघन्योत्कृष्टाभ्यां पञ्चधनुः शतपमाणेति उभयो द इति । 'ठिई जहन्नेणं पुरुषकोडी उको सेण वि पुनः कोडी' स्थिति जघन्येन पूर्वकोटि रुत्कर्षेणाऽपि पूर्वकोटिरेव, प्रथमगमे जघन्येन स्थितिवर्ष पृथक्वामिका उत्कर्षेण पूर्वकोटिः कथिता इहतु जघन्योत्कृष्टाभ्यां पूर्वकोटिरूमा इति उभयत्र भवति वैलक्षण्यम् । एवं अणुबंधोवि' एवमनुबन्धोऽपि जघन्योत्कृष्टाभ्यां पूर्वकोटिपमाणक एव ज्ञातव्यः । 'सेसं जहा पढमगमए' शेष यत् कथितं तदतिरिक्त सर्वभरि यथा प्रथमगमके कथितं तथैव इहापि अनुसन्धेयम् जघन्य से पांचसो धनुष की है, और उत्कृष्ट से भी वह पांचसो धनुष की है, प्रथम गम में जघन्य अवगाहना रत्निपृथक्त्व, की कही गयी है और यहां वह जघन्य तथा उत्कृष्ट से भी पांचसो धनुष की कही गयी है, स्थिति जघन्य से पूर्वकोटि प्रमाण है और उत्कृष्ट से भी वह पूर्वकोटि प्रमाण है प्रथम गम में जघन्य से स्थिति वर्ष पृथक्त्व की तथा उत्कृष्ट से पूर्व कोटि की कही है और यहां वह जघन्य तथा उत्कृष्ट से भी पूर्वकोटि रूप है। 'एवं अणुबंधोवि' इसी प्रकार से अनुबन्ध भी यहां जघन्य और उस्कृष्ट से पूर्वकोटि रूप ही है, इस प्रकार उत्कृष्ट काल की स्थितिवाला जो मनुष्य है और शर्करा प्रभा में नारक रूप से उत्पन्न होने के योग्य है ऐसे उस मनुष्य के इन पूर्वोक्त सात आठ नौ. इन गमो में प्रथम गम की अपेक्षा नानात्वभिन्नता है, 'सेसं जहा पढमगमए' बाकी का और जो परिमाण संह. તે પાંચસો ધનુષની કહી છે. સ્થિતિ જઘન્યથી પૂર્વ કેટિ પ્રમાણુની છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ તે પૂર્વકેટિ પ્રમાણ છે. પહેલા ગામમાં જઘન્યથી સ્થિતિ વર્ષ પૃથકૃત્વની છે અને અહિયાં તે પૂર્વકેટિ રૂપ છે. ઉત્કૃષ્ટથી બને ગમમાં તે પૂર્વ કોટી પણુથી બતાવેલ છે. જેથી ઉત્કૃષ્ટ પણામાં બન્નેમાં સરખાપણ છે. તેમ સમજવું એજ રીતે અનુબંધ પણ અહિયાં જ ઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂ. કેટી જ છે. આ રીતે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિ વાળે જે મનુષ્ય હેય અને શર્કરા પ્રભા પૃથ્વીમાં નારક પણાથી ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય હોય એવા તે મનુથયને આ પહેલા કહેલ ગમો પૈકી પહેલા ગામની અપેક્ષાએ નના અર્થાત્ नु ५४ छ. 'सेसं जहा पढमगमए' मानु भा २ परिभा, संहनन
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪