________________
५३६
भगवतीसूत्रे यामुमनुष्यापेक्षया शर्कराप्रभायियासुमनुष्याणां शरीरावगाहनायां वैलक्षण्यमिति, तथा-'ठिई जहन्नेणं वासगृहत्तं उक्कोसेणं पुषकोडी' स्थितिर्जघन्येन बर्ष पृथक्त्वम् द्विवर्षादारभ्य नववर्ष पर्यन्तम् तथोत्कर्षेण पूर्वकोटिः, रत्नप्रभागमे स्थितिघ. न्येन मासपृथक्-वरूपा कथिता उत्कृष्टतः पूर्वकोटिरिहतु जघन्येन वर्ष पृथक्त्वम् उत्कृष्टतस्तु पूर्वकोटिरेवेति जघन्यस्थित्यंशे भेदात् उमयोः प्रकरणयो वैलक्षण्यम् । 'एउमणुवंधो वि' एवम्-स्थितिवदेव अनुबन्धोऽपि जघन्येन वर्ष पृथक्त्वं द्विवर्षादारभ्य नववर्ष पर्यन्तम् उत्कृष्टतः पूर्वकोटिः, स्थितिरूपस्वादनुबन्धस्य, पूर्व प्रकरणे जघन्येन अनुबन्धः मासपृथक्त्वरूपः कथितः इह तु वर्ष पृथक्त्वरूप इति भवत्येव उभयत्रापि लक्षण्यमिति । 'सेस तं चे' शेष तदेव अवगाहनास्थि की है, इस प्रकार यह अन्तर रत्नप्रभा में जाने वाले और शर्करामभा में जानेवाले मनुष्यों के शरीरावगाहना में होता है-'ठिई जहन्नेणं वास पुहसं उक्कोसेणं पुन्यकोडी' रत्नप्रभा में जानेवाले मनुष्यों की स्थिति जघन्य से मास पृथक्त्वकी होती है और उत्कृष्ट से वह एक पूर्वकोटि की होती है और शर्कराप्रभा में जाने वाले मनुष्यों की स्थिति जघन्य से वर्ष पृथक्त्व की होती है और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की होती है इस प्रकार यह स्थिति की अपेक्षा अन्तर है। 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति के जैसा अनुबन्ध में भी अन्तर है-जघन्य से वह वर्ष पृथक्त्व को है और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि का है रत्नप्रभा में यह जघन्य से मासपृथक्त्व का और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि का है। इस प्रकार यह अनुबन्ध की अपेक्षा अन्तर हैं। 'सेसं तं चेव' इन बातों के अतिरिक्त और सब છે. આ રીતે આ જુલાઈ રત્નપ્રભામાં જવાવ ળા અને શર્કરા પ્રભામાં જવાवा मनुष्याना शरी२नी माडना समयमा ४ छे. तथा 'ठिई जहन्नेणं पासपुहुत्त उक्कोसेणं पुञ्चकोडी' श४२प्रभामा वाण मनुष्योनी स्थिति જઘન્યથી વર્ષ પૃથકત્વની હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વકટીની . રત્નપ્રભામાં જવાવાળા મનની સ્થિતિ જઘન્યથી માસ પ્રથકૃત્વની હોય છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે પૂર્વકેટિની છે. આ રીતે આ સ્થિતિ સંબંધી જુદાપણું छ, 'एवं अणुबधी वि०' स्थितिनी म अनुमयमा ५६५ मत२ छ, ते ४५. ન્યથી વર્ષ પૃથક્વનું છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પૂર્વકેટી સુધીનું છે. રત્નપ્રભામાં તે જઘન્યથી માસ પૃથકત્વનું અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વકેટીનું છે. એ જ રીતે આ भनुम समधी नुहा पा छ. 'सेसं तं चेव' मा ४५न शिवाय भी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪