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________________ - ५२४ भगवतीसत्रे 'से गं भंते !' स खलु भदन्त ! 'केवइयकालहि एसु उवाज्जेज्जा' कियत्काल स्थितिकेषु नैरयिकेषु उत्पद्येत हे भदन्त ! संख्यातवर्षायुष्कः सज्ञिमनुष्यो यः शर्करा पृथिवीनरके समुत्पत्तियोग्यो विद्यते स खलु मनुष्यः कियत्कालस्थितिक नैरयिकेपूत्पद्यत इति प्रश्नः । उत्तरमाह-'गोयमा' इत्यादि गोयमा हे गौतम ! 'जहन्नेणं सागरोत्रमहिइ सु' जघन्येन सागरोपमस्थितिकेषु नैरयिकेषु तथा 'उकोसेणं तिसागरोवमट्ठिइएमु' उवज्जेम्जा' उत्कर्षेण त्रिसागरोपमस्थितिकेषु नैरयिकेपूलपोत इति । 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! जीना, एकसमयेन तत्र द्वितीयनरके कियत्संख्यकाः समुत्पद्यन्ते इति प्रश्ना, उत्तरमाह-'सो चेव रयणपभापुढवीगमओ णेययो' स एव रत्नप्रभापृथिवीगमो नेतव्यः, रत्नप्रभायां येनैव क्रमेण उत्पादव्यवस्था कथिता तेनैव क्रमेण इहापि वक्तव्या, तथाहि-कियन्त 'केवयकालट्ठिएसु उववज्जेज्ना' कितने काल की स्थिति वाले नैरपिकों में उत्पन्न होता है ? इमके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं सागरोधमटिइएसु उक्कोसेणं ति सागरोवमटिइएस्तु उववज्जेजना' वह जघन्यसे उन नारको में उत्पन्न होता है कि जिन की जघन्य स्थिति एक सागरोपम की होती है और अधिक से अधिक वह उन नारकों में उत्पन्न होता है कि जिनकी उत्कृष्ट से स्थिति तीन सागरोपम की होती है। अब गौतम प्रभु से पुनः ऐसा पूछते हैं-'तेणं भंते जीवा०' हे भदन्त । ऐसे वे जीव एक समय में वहां कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'सो चेव रयणप्पभापुढवीगमओ णेयव्यो' हे गौतम ! रत्नप्रभा में जिस क्रम से उत्पाद व्यवस्था कही गयी है उसी क्रम से यहां द्वितीय नरक में वह कह लेनी चाहिये जैसे- यहां द्वितीय नरक पाने योग्य राय सवात 'भंते' B सन् 'केवइयकालठ्ठिइएसु उववजजेज्जा' tean नी स्थितिवानयिमा ५न्न थाय छ १ मा प्रश्ना उत्तरभ प्रभु ४३ छे 3-गोयमा ! 8 गौतम ! जहन्ने सागरोवमद्विइपसु उवपज्जेज्जा उक्कासेणं तिसागरावमद्विइएसु उववज्जेज्जा' पायथी ताना२ કેમાં ઉત્પન્ન થાય છે કે જે એની જઘન્ય સ્થિતિ એક સાગરોપમની હેય છે. અને અધિથી અધિક તે એ નારકોમાં ઉત્પન્ન થાય છે કે જેમની સ્થિતિ ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ સાગરોપમની હોય છે. ફરીથી ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એવું પૂછે -से गं भंते जीवा० सावन मेवात । मे। समयमा त्याला उत्पन्न याय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४९ छ -'सेो चेव रयणप्पमा पदवी गमओ णेयवो' गौतम नला पृथ्वीमा उमथी पात व्यवस्था કહેવામાં આવી છે, એજ કમથી, અહિયાં બીજા નરકમાં તે પ્રમાણેની વ્યવસ્થા, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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