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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ २०७ मनुष्येभ्यो नारकाणामुत्पत्यादिकम् ५०५ रभ्यधिकानि, चतुःपूर्वकोटयभ्यधिकचतुः सागरोपमपर्यन्तम्, 'एवइयं जाव करेजा' एतावन्तं यावत् कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्तं मनुष्यगति नारकगतिं च स सेवेत तथा मनुष्यगतौ नारकगतौ च गमनागमने कुर्यादिति तृतीयो गमः।३। 'सो चेव अप्पणा जहनकालटिइभो जाओ' स एव मनुष्यः आत्मना-स्वयं जघन्यकालस्थितिको जातः सन् रत्नप्रभानरकसंबन्धिनारकेषु यदि उत्पद्यन्ते तदा जघन्योत्कृष्टाभ्यां दशवर्षसहस्रस्थितिको भूत्वा उत्पद्यते 'एस चे वत्तव्यया' एषैव-उपरोक्तपथमगमवक्तव्यतैव सर्वाऽपि वक्तव्या प्रथमगमवदेव शरीरावगाहनादिकं सर्व वक्तव्यम्, 'णवरे इमाइं पंच णाणत्ताई' नवरम् इमानि पश्च नानात्वानि वक्ष्यमाणपञ्चसु विषयेषु प्रथमगमापेक्षया चैलक्षण्यं ज्ञातव्यम् यत्र यत्र वैलक्षण्यं तत् तत् स्थलं विशिष्य स. यमेव सूत्रकारो दर्श पति-'सरीरोगाहणा' इत्यादि, 'सरीरोगाहगा जहन्नेणं अंगुल. पुहुतं' शरीरावगाहना जघन्येन अंगुलपृथक्त्वम्, उत्कृष्टतोऽपि अंगुलपृथक्त्वमेव है और इतने ही काल तक वह उसमें गमना गमन करता है, ऐसा यह तृतीय गम है। ___'सो चेव अप्पणा जहन्नकालटिहओ' यदि वह मनुष्य स्वयं जघन्य काल की स्थितिवाला होता हुआ रत्नप्रभा सम्बन्धि नारकों में उत्पन्न होता है तो वह जघन्य तथा उत्कृष्ट से दस हजार वर्षकी स्थितिवाले नारकों में उत्पन्न होता है । यहां पर भी वही प्रथम गमोक्त वक्तव्यता पूरी की पूरी कह लेनी चाहिये, परन्तु उसकी अपेक्षा जो इसमें अन्तर है वह 'सरीरोगाहगा' आदि इन, पांच वातों को लेकर है, वही अन्तर कहते हैं- सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलपुहुत्तं उक्कोसेणं वि अंगुलपु. हुत्तं' यहां शरीरकी अवगाहना जघन्य से अंगुलपृथक्त्व है-दो अंगुल से लेकर ९ अंगुल तक की है तथा उत्कृष्ट से भी इतनी ही है, अर्थात् नरक में जानेवाले जीवों की शरीर की अवगाहना-ऊंचाई-जघन्य से अंगुलગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે છે. એ પ્રમાણે આ ત્રીજે ગમ છે. 'सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्रिइओ जामो' नेते मनुष्य धन्य बनी સ્થિતિવાળે થઈને રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારકમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે અહિયાં પણ પહેલા ગમનું કથન પુરેપુરું કહેવું જોઈએ. પરંતુ તેની અપેક્ષાથી આ अथनमा २ मत२ छ, ते 'सरीरोगाहणा' शरीर, भगाना विगैरे । पांय स्थानान छन छ.-सरीरोगाहणा जहण्णेणं अंगुलपुहुत्तं उक्कोसेणं, वि अंगुलपुहत्तं' मडियां शरीरनी समाना न्यथी मins पृथइपनी छ,-सेटले કે બે આંગળથી લઈને ૯ નવ આગળની છે. તથા ઉત્કૃષ્ટથી પણ એટલી જ भ० ६४ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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