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भगवतीस्त्र कुत्रेति-उत्कृष्ट कायसंवेधे चतुर्गुणा कर्तव्येति भावः, तथाहि-अत्र यदुक्तं गाथायाम् 'सागरमेगं' रत्नपमानामपथमपृथिव्यामेकसागरोपमप्रमिता स्थितिः कथिता सा कायसंवेधे चतुर्गुणितेति चतुः सागरोपमाणि ज्ञातव्या । एवं द्वितीयायां शर्करामभायां त्रीणि सागरोपमाणि स्थितिः कथिता तस्याश्चतुर्मिगुणने द्वादशसागरोपमाणि स्थितिर्भवति, अतएवात्र शर्करामभासूत्रे कथितम्'उकोसेणं बारससागरोवमाई' इति, एवं पूर्वकोटयोऽपि चतुषु संज्ञितिर्यग्भवेषु पतन एवेति । अनेन क्रमेण चतुर्गुणा भवतीति, सूत्रकारः-स्वयमेव दर्शयति'बालुयप्पभाए' इत्यादि, 'वालयप्पभाए पुढवीए अहावीसं सागरोवमाइं चउगुणिया भवई' बालकाप्रभायां पृथिव्यां सप्तसागरोपमा स्थितिरिति कायसंवेधे उत्कृष्टे प्रथम रत्नप्रभा पृथिवी में उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम की कही गयी है यही स्थिति कायसंवेध में चार सागरोपम की होती है, इसी प्रकार द्वितीय शर्करा प्रभा में तीन सागरोपम की स्थिति कही गयी है-सो यही स्थिति कायसंवेध में बारह सागरोपम की हो जाती है, इसीलिये इस शर्करा प्रभा सूत्र में सूत्रकार ने 'उकोसेणं घारससागरोधमाई' कायसंवेध में बारह सागरोपम की स्थिति कही है, इसी प्रकार से चार संज्ञी तिर्यग्भवों कीपूर्व कोटियां चार कही हैं। इसी क्रम से वे चतुर्गुणित होती है। इसी चतुर्गुणित की बात को सूत्रकार स्वयं प्रदर्शित करने के अभिप्राय से 'बालुयप्पभाए पुढवीए अट्ठावीसं सागरोचमाई चउ. गुणिया भवई' ऐसा सूत्र पाठ कह रहे हैं, इसके द्वारा यही उन्होंने समझाया है कि बालुका प्रभा नाम की नरक पृथिवी में जो सात सागએક સાગરોપમની કહી છે. એજ સ્થિતિ કાય સંધમાં ચાર સાગરોપમની થઈ જાય છે. એ જ રીતે બીજી શર્કરામભામાં ત્રણ સાગરોપમની સ્થિતિ કહી છે. તે એજ સ્થિતિ કાય સંધમાં ૧૨ બાર સાગરોપમની થઈ જાય છે, तथा मा राप्रमा सूत्रमा सूत्रा२ 'उक्कोसेणं बारससागरोवमाई' आयसवे. ધમાં બાર સાગરોપમની સ્થિતિ કહી છે. એ જ રીતે ચાર સંજ્ઞી તિર્યંચભ
માં પૂર્વટિયે ચાર જ છે, એજ ક્રમથી તે ચાર ગણી થાય છે. આજ ચાર ગુણા કરવાની વાત સૂત્રકાર પોતે જ પ્રગટ કરવાના અભિપ્રાયથી નીચે अभार सूत्रमा ४ छ.-'बालुयप्पभाए पुढवीए अदावीसं सागरोवमाई चउगु. णिया भवई' या सूत्रा द्वारा सूत्ररे को छ ?-वायुप्रमा नामनी નક પૃથ્વીમાં સાત સાગરોપમની જે સ્થિતિ કહેવામાં આવી છે, તેને ચાર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪