SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ women ४६४ भगवतीसूत्र भवतीति प्रश्नस्य भवादेशेन भवद्वयपर्यन्तं गमनागमनं भवतीत्युत्तरम्-एतत्पर्यन्तं रत्नप्रभामकरणं वक्तव्यमिति । 'कालादेसेणं' कालादेशेन कालापेक्षयेत्यर्थः, जहन्नेणं सागरोवमं अंगोमुत्तम महियं' जघन्येन सागरोपममन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकम् 'उक्कोसेणं बारससागरोचमाई चउहि पुषकोडीहिं अमहियाई' उत्कर्षण द्वादशसागरोपमाणि चतसृभिः पूर्वकोटिभिरभ्यधिकानि 'एवइयं कालं से वेज्जा एवइयं कालं गइरागई करेजा' एतावन्तं कालं सेवेत एतावन्तमेव कालं गत्यागती कुर्यात् हे गौतम ! इमे जीशः शर्करापभायामुत्पित्सवो जघन्यतोऽन्तर्मुहूर्त्ताधिक सागरोपमम् उत्कृष्टश्चतु पूर्वकोटयधिकद्वादशसागरोपमात्मकपर्यन्तं पर्याप्तदीर्घाहै ? तो इस प्रश्न के उत्तर में यहां ऐसा कहना चाहिये कि भव की अपेक्षा जघन्य दो भव तक होता है, इस प्रकार का रत्नप्रभा सम्बन्धी प्रकरण यहाँ तक का यहां कहना चाहिये, 'कालादेसेणं' काल की अपेक्षा 'जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुत्तमभहियं' तिर्यग्गति का और नरक गति का सेवन और उसमें गमनागमन जघन्य से अन्त में हूर्त अधिक एक सागरोपम तक और 'उकोसेणं पारस सागरोवमाई चउहि पुत्वकोडीहिं अमहियाई उत्कृष्ट से चार पूर्व कोटि अधिक बारह सागरोपम तक होता है, इस प्रकार वह जीव 'एवइयं कालं सेवेज्जा, एवइयं कालं गइरागई करेज्जा' इतने काल तक उस गति का सेवन कर सकता है और इतने ही काल तक वह गमनागमन कर सकता है। तात्पर्य इस कथन का ऐसा हैं कि ये जीव जो शर्कराप्रभा में उत्पन्न होने के योग्य हैं जघन्य से अन्तर्मुहर्त अधिक एक सागरो. पम काल तक और उत्कृष्ट से चार पूर्वकोटि अधिक बारह सागरोपम એવું કહેવામાં આવ્યું છે કે-ભવની અપેક્ષાએ બે ભવ સુધીનું હોય છે. આ રીતનું રત્નપ્રભા સંબંધી સઘળું પ્રકરણ આ કથન સુધીનું અહિયાં કહી લેવું. 'कालादेसेणं' नी अपेक्षा 'जहण्णेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमभहियं तिय:ચગતિનું અને નરક ગતિનું સેવન અને તેમાં ગમનાગમન જઘન્યથી અંત. भुत अघि से साग। ५म सुदी मने 'उक्कोसेणं बारससागरोत्रमाई चाहि पुव्वकोडीहि अमहियाई' थी यार पूर्व पटि मधि४ ॥२ सागश५म सुधी हाय छे. मारीत ते ७१ 'एवइयं कालं सेवेज्जा एव इयं कालं गइरागई करेज्जा' मा ४ सुधी ते शतिनु सेवन ४२ छे. मन सेटमा સુધી ગમના ગમન કરતા રહે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે-જે આ જીવ શર્કરામભામાં ઉત્પનન થવાને ગ્યા હોય તે જઘા થી અંતર્મુહર્ત અધિક એક સાગરોપમ કાળ સુધી તે પ્રમાણેની તિર્યંચ ગતિનું અને શર્કરામભા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy