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________________ भगवतीस्त्रे 'चत्तालीसाए वाससहस्से हिं अमहियाओ' चत्वारिंशद्वर्ष सहरभ्यधिकार, 'एवइयं कालं सेवेज्जा एवइयं कालं गइरागई करेज्जा' एतावत्कालपर्यन्त दीर्घाशुष्कपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जीवो जघन्यकालस्थितिकरत्नममानारकेषु यियासुरित्यष्टमो गमः ८ इति ।। 'उक्कोसकालहिइयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसभिपंचिंदियतिरिक्खजोगिए गं भंते' उत्कृष्टकालस्थितिकपर्याप्तसंख्येयवर्षायुष्कसंक्षिपश्चन्द्रियतिर्यग्योनिका खलु भदन्त ! 'जे भविए' यो भव्या-उत्पत्तियोग्यः उक्कोसकाल टिइयरयगपमापुढवीनेरइएम' उत्कृष्ट कालस्थितिकरत्नपभापृथिवीसंबन्धिनैरपिके 'उववज्जित्तए' उत्पत्तुम् 'से णं भंते । स खलु भदन्त ! जीवाः 'केवइयकालहिएपसु उपवज्जेज्जा' कियत्कालस्थिति केषु नैरयिकेषु उत्पधेत इति प्रश्नः । भगन्द्रिय तिर्यग्गति का और नरक गति का सेवन करता है, तथा इतने ही काल तक तिर्यश्चगति में और जघन्य स्थिति वाली नारक गति में वह गमनागमन करता है। इस प्रकार से यह आठवां गम है। नौवाँ गम इस प्रकार से है-'उकोसकालविइय पज्जत्त संखेज्ज. वासाउय सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते' हे भदन्त ! जो संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव उस्कृष्ट काल की स्थितिवाला है, पर्याप्त है, संख्यात वर्षायुष्क है, वह यदि उस्कृष्ट काल की स्थितिवाले रत्नप्रभा सम्बन्धी नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है तो हे भदन्त । वह 'केवइयकालदिइएप्सु उघवज्जेज्जा' कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैंન્દ્રિય તિર્યંચ ગતિનું અને નારક ગતિનું સેવન કરે છે. તથા એટલાજ કાળ સુધી તિય ગતિમાં અને જઘન્ય સ્થિતિવાળા નારકની ગતિમાં તે ગામના ગામન-અવર જવર કરે છે. या शत मा मामी गम छे. हवे नमा मर्नु ४थन ४२पामा मावे ठे-4। प्रमाणे छ.-'उक्कोसकालदिइय पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचि दियतिरिक्खजोणिए णं भाते ! 8 सशવન સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ પેનીવાળે જે જીવ ઉત્કૃષ્ટ કાળની રિથતિવાળો છે, પર્યાપ્ત છે, સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળે છે, તે જે ઉત્કૃષ્ટ કાળની સ્થિતિવાળા રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નૈરયિકમાં ઉત્પન્ન થવાને ગ્યા છે, તે હે मन त 'केवइय-काल दिइएसु उववज्जेज्जा' हैट सनी स्थितिमा नैथि. Hi B५ थाय छ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -गोयमा ! 3 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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