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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ सू०५ संक्षिपञ्चन्द्रियतिरश्चां नारकेषूनि० ४३७ खलु भदन्त ? 'जे भविए' यो भन्यो-भवितुं योग्यः ‘रयणप्पभापुढवीनेरहएमु' रत्नमभानामकनारकपृथिवीसम्बन्धिषु नैरपिकेषु 'उजवज्जितए' उपपत्तुम्, 'से गं भंते' स खलु भदन्त ! जीवः 'केवइयकालटिइएमु कियत्कालस्थितिमत्सु नैरयिकेषु 'उववज्जेज्जा' उत्पद्यतेति प्रश्नः। भगानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएमु' जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु नैरयिकेषु 'उकोसेणं सागरोवमटिइएसु नेरइएसु उवबज्जेज्जा' उत्कर्षेण सागरोपमस्थिति के षु नैरयिकेषु उत्पधेत । तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उज्जति' ते जघन्यकालस्थितिकसंज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः जीवाः खलु भदन्त ! एकसमयेन एकस्मिन् समये इत्यर्थः, कियात-कियत्संख्यका उत्पद्यन्ते-हे गौतम ! जघन्येन एको वा हिइयपज्जतसंखेजवासाउय सण्णिपचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते !' हे भदन्त ! जघन्यकाल की स्थितिवाला पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयु वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियश्चयोनिक जीव 'जे भविए रयणप्पभा पुढवीनेर इएसु 'जो रत्नप्रभा पृथिवी संबंधी नारकों में उत्पन्न होने योग्य है 'से णं भंते ! केवइयकालट्ठिएस्सु उववज्जेज्जा' वह कितने वर्ष की आयुवाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएसु' वह जघन्य से दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में और 'उक्को. सेणे' उत्कृष्ट से सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है, अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'ते णं भंते ! जीवा' एग समएणं केवइया उववज्जति' हे भदन्त ! वे जघन्य काल की स्थिति वाले संज्ञीपञ्चेन्द्रिय तियग्योनिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? पज्जत्तसं खेज्जवासाउयनणिपचि दियतिरिक्खजोगिए णं भंते । सन् જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળે સંજ્ઞી ५यन्द्रिय तिय" ०१ जे भविए रयणप्पभापुढवीनेरइएसु' २त्नमा पृथ्वीना नामi surन यवान योग्य छ, 'से ण भंते ! केवइयकालद्विइएसु उववज्जेज्जा' ते टसा पनी आयुवाणा नैरयिमा 4-1 थायले ? ॥ प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ छ - गोयमा ! ॐ गौतम ! 'जहण्णेणं दसवा. ससहस्सदिइएसु' धन्यथी ते इस स२ वर्षनी स्थितिमा नयिमा भने उकासेग' थी सास.२५भनी स्थितिमा नैरयिमा उत्पन्न थाय छे. शथी गौतमस्वामी प्रसुन से पूछे छे -'ते णं भंते ! जीवा एगसमएण केवइया उववज्जति' है मग धन्य जनी स्थितिवाससी पन्द्रय તિર્યંચ નિવાળા તે જ એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે ? આ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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