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________________ - - - - - me प्रमेयचन्द्रिका का ०२४ ३.१ २०५ संशिपञ्चन्द्रियतिरश्चां मारकेनि० ४१ संक्षिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः खलु भदन्त ! यो भव्यो जघन्यकालस्थितिकरत्नममापृथिवीनरयिकेषु उत्पत्तुम् 'से भंते ! केवइयकालद्विइएसु उववज्जेज्ना' स खल भदन्त ! कियस्कालस्थितिकेषु उत्पद्यतेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'जान्नेणं दसवाससहस्सद्विइएसु उववज्जेज्जा' जघन्येन दशवर्षसह. रस्थिति के घूत्पयेत, 'उक्कोसेण वि दसवाससस्सटिइएसु उववज्जेज्जा' उत्कर्षेणा. ऽपि दशवर्षसहस्रस्थितिकेषूत्पद्यत इति । 'ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवाः संज्ञिपश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका एकसमयेन एकस्मिन् समये कियन्त:-कियत्संख्यकाः समुत्पद्यन्ते इति पश्नः। उत्तरमाह-एवं सोचेव' इत्यादि, 'एवं सोचेव पढमो गमओ निरवसेसो भाणिययो' एवं स एवं गप्पभापुढवीनेरइएसु उववज्जित्तए' हे भदन्त ! संख्यात वर्ष की आयुवाला पश्चेन्द्रिय तिर्यश्च जो जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से णं भंते । केवाय कालडिएसु उववज्जेज्जा' सो हे भदन्त ! वह कितने काल की स्थितियाले नैरयिकी में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतस से कहते हैं-'गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएसु उववज्जेज्जा' उकासेण वि दसवारासहस्सटिइएसु उववज्जेज्जा' हे गौतम। वह जघन्य से जिनकी स्थिति १० हजार वर्षकी है उनमें उत्पन्न होता है और इसी प्रकार से उत्कृष्ट से भी जिनकी स्थिति १० हजार वर्षकी है उनमें वह उत्पन्न होता है 'ते गं भंते ! जीवा एगसमएणं केवड्या उववज्जति' अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-हे भदन्त ! संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं सो चेव' इत्यादि-हे गौतम ! इस विषय में पुढवीनेरइएसु उववज्जित्तए' उमापन सभ्यात ११नी मायुपाणार પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નૈરયિકમાં पन्न यवान योग्य छे. 'से णं भंते ! केवइयकालदिइएसु उववज्जेज्जा' 3 ભગવન તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા નરયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે? या प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीन ४९ -गोयमा ! जहण्णेणं दसवास. सहस्सद्विइएसु उववज्जेज्जा, उक्कोसेणं वि दसवासमहासद्विइएसु उत्रवज्जेज्जा है ગૌતમ ! તે જઘન્યથી જેની સ્થિતિ ૧૦ દસ હજાર વર્ષની છે. તેમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તેમજ ઉત્કૃષ્ટથી પણ જેમની સ્થિતિ ૧૦ હજાર વર્ષની डाय तमामा उत्पन्न थाय छ, 'ते णं भंते जीवा एगसमएणं केवइया उवव जंति' गीतमस्वामी प्रभुन ५छे छे 2-3 भगवन् सभी पथन्द्रिय तिय" એનિવાળા તે જ એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે ? मा प्रश्न उत्तम प्र एवं सो चेव'छत्याहि गीतम! આ વિષયમાં અહિયાં તે પહેલે ગમ સંપૂર્ણ રીતે સમજ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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