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प्रमेयद्रिका टीका श०२४ उ. १ सू०४ जघन्यस्थितिकनैरयिकाणां नि० ૪૦૨ भदन्त ! 'जे भविए' यो भव्यः - योग्य: 'जहनकालडिइएस रयणप्पभापुढची नेरइएसु' जघन्य कालस्थितिकरत्नम मापृथिवी संबन्धिनैरयिकेषु 'उत्रवज्जित्तर' उपपत्तुम् 'से णं भंते' स खलु भदन्त ! 'केवइय काल० जाव' कियत्कालस्थितिकेषु नैरयिकेषु 'उत्रवज्जेज्जा' उत्पद्येत इति प्रश्नः । भगवानाह - गोयमा' हे गौतम 'जहन्नेणं दसवासreaf see' जघन्येन दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु नैरयिकेषु उत्पद्येत इत्यग्रिमेण संबन्धः, 'उक्कोसेण वि' उत्कर्षेणापि 'दसवाससहस्सद्विप' दशवर्षसहस्रस्थितिकेषु नैरयिकेषु 'उववज्जेज्जा' उत्पद्येत इति । 'ते णं भंते ! जीवा' ते खलु भदन्त ! जीवा एकसमयेन कियन्तो नरकावा से समुत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । उत्तरमाह - 'सेसं तं चेत्र जहा सत्तमगमए' शेष ं तदेव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला है और वह 'जे भविए जहन्नकालट्ठिएस रयणप्पा पुढवीनेरइएस उववज्जित्तए' जघन्य काल की स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, तो ऐसा वह तिर्यश्च जीव 'केवइय० काल० जाव' कितने काल की स्थितिवाले नैरfuकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! जह
दसवास सहसएिस' हे गौतम! वह उन नैरथिकों में उत्पन्न होता है कि जिनकी जघन्य से दश हजार वर्ष की स्थिति है, और 'उक्कोसेणं वि दसवाससहस्सद्दिहएस' उत्कृष्ट से भी जिनकी स्थिति १०००० वर्ष की है,
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'ते णं भंते ! जीवा०' हे भदन्त । ऐसे वे जीव एक समय में वहां कितने उत्पन्न होते हैं ? - इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'सेसं तं चैव जहा सत्तमगमए' हे गौतम !
गोवा को तिर्यय उत्कृष्ट अजनी स्थितिवाणी छे, मनेते जहन्नका लट्ठिइएस रयणप्पभापुढवीनेरइएसु उववज्जित्तए' ४धन्य अजनी स्थितिवाजा रत्नप्रभा પૃથ્વીના નૈ। વિકામાં ઉત્પન્ન થવાને ચાગ્ય છે, એવા તે તિય ચ જીવ 'केवइय० काल० जाव' डेटा अपनी स्थितिवाणा नैरयिम उत्पन्न थाय छे ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीने छे ! - 'गोयमा !' जहन्नेणं दसवास सहस्त्रइिएस' हे गौतम! ते मे नैरथि।मां उत्पन्न थाय छेनी स्थिति धन्यथी दृश उमर वर्षानी के अने 'उक्कोसेणं वि दसवास सहस्त्रट्ठिइएस' सृष्टथी पशु बेमनी स्थिति १०००० इस हुनर वर्षानी छे.
हवे गौतमस्वामी प्रभुने मेनुं पूछे छे है- 'ते णं भते जीवा' हे अभ. વન્ એવા તે જીવે એક સમયમાં ત્યાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु छे - 'सेस तं चैव जहा सत्तमगमए' हे गौतम | मा
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪