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________________ प्रमेन्द्रका टीका श०२४ ३०१ ०१ नैरयिकाणामुत्पादादिकद्वारनि० ३४३ नैरयिकेभ्य उत्पद्यन्ते नरकादागत्य समुत्पन्ना भवन्ति 'तिरिक्खजोणिएहिंतो उपवनंति' अथवा तिर्यग्योनिकेभ्य उत्पद्यन्ते, 'मणुस्सेर्हितो उनवज्जंति' मनुयेभ्यो वा उपद्यन्ते, 'देवेर्हितो उनवज्जति' देवेभ्यो वा आगत्य इमे नैरयिका नरकवासे समुत्पद्यन्ते किमिति मनः । भगवानाह - गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! णो नेरइएहिंतो उनवज्जंति' नो नैरयिकेभ्य उत्पद्यन्ते 'तिरिक्खजोणिरहितो उववज्र्ज्जति' तिर्यग्योनिकेभ्य उत्पद्यन्ते, 'मणुस्सेहिंतो वि उबवज्जंति' मनुष्येभ्योऽपि उत्पद्यन्ते 'णो देवे हितो उववज्जति' नो देवेभ्य उत्पद्यन्त, हे गौतम! इमे नारका नरकादागत्य नरके नोत्पद्यन्ते न वा देवेभ्य आगत्य नरके उत्पद्यन्ते, किन्तु तिर्यग्योनिकेभ्य आगस्य मनुष्येभ्यश्चागत्य नरके सम्मु'किं नेरहहिंतो वज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उबवज्जंति, मणु सेहितो उववज्जंति, देवेहितो उववज्जंति ?' क्या वे नैरयिक से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यञ्चों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों से आकरके उत्पन्न होते है ? या देवों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं- 'गोयमा णो नेरहएहिंतो उबवज्जति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मणुस्सेहिंतो बि उववज्जंति, णो देवेहिंतो उबवज्जंति' हेगौतम । नैरयिक नैरयिकों से आकर के उत्पन्न नहीं होते हैं, तिर्यञ्चों से आकरके उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों से भी आकरके उत्पन्न होते हैं, देवों से आकरके नैरधिक उत्पन्न नहीं होते हैं । ऐसा यह नियम है कि नैरयिक से मरकर जीव उसी समय नैरयिक की पर्याय से उत्पन्न नहीं होता है इसी प्रकार देवगति से मरकर जीव नरक गति में उत्पन्ननहीं होता है, किन्तु छे ? 'कि' नेरइप हिंता उववज्जंति तिरिक्खजेोणिएहिंता उववज्जंति मणुस्सेहिता उववति देवेहिता उववज्जति' तेथे शुद्ध नरम्भांथी भावाने उत्पन्न थाय छे ? અથવા તિય ચેાથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, મનુષ્યામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु गौतम स्वाभीने उडे छे ! - 'गोयमा ! णो णेरइरहिंतो उववज्जति, तिरिक्खजेोणिरहिता उववज्जंति' मणुस्से हि तो वि उववज्जति, णो देवेहिते। उववज्ज'ति' હું ગૌતમ ! નૈયિકા નરકમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. તેએ તિય ચામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, મનુષ્ચામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે, નૈરિયકા ધ્રુવેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થતા નથી. એવા નિયમ છે કે નૈયિક પણામાંથી મરીને જીવ તેજ સમયે નૈરિયકની પર્યાયથી ઉત્પન્ન થતા નથી. એજ રીતે દેવ ગતિથી મરીને જીવ નરકગતિમાં ઉત્પન્ન થતા નથી. પરંતુ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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