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________________ भगवतीचे मोढरी दन्तीचण्डीनाम्' तत्र पाठा-कुमारपाठेति लोकमसिद्धा मृगवालुंकी प्रभृतयः सर्वेऽपि साधारणशरीरवादरवनस्पतिविशेषा एतेषां पाठायनन्तकायबनस्पतिविशेषाणाम् 'एएसिणं जे जीवा' एतेषां खलु अनन्तकायवनस्पतिविशेषाणां ये जीवाः 'मूलत्ताए' मूलतया-मूलस्वरूपेण 'एवं एस्थ वि मूलादिया दस उद्देसगा आलुयवग्गसरिसा एवमत्रापि मूलादिका दश उद्देशका आलुकवर्ग सहशा वाच्याः, आलु कवर्गकदापि मूलकन्दस्कन्धत्वगादिका दश उद्देशका वक्तव्याः। एवं शालिवर्गातिदेशसंभालु कवर्ण पदेव ज्ञातव्याम् । आलुकवर्गः वंशवर्गे वंशवर्गा. स्यातिदेशः कृत, इति । शालिकर्णे दुष्पादौ देोत्पत्तिः कथिता परन्तु वंशवर्गे दंती-चंडीगं' पाठा-कुमारपाठा, मृगचाकी, मधुररसा, राजवल्ली, पमा, मोढरी, दंनी और चंडी-ये जो साधारण एवं बादर वनस्पतिकायिक हैं सो इनके मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं-वे वहां कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं'एवं एत्य वि मूलादीया दस उद्देसगा आलुकवग्गसरिसा' हे गौतम! आलुक वर्ग के जैसा यहां पर भी मूलादिक दस उद्देशक कहना चाहिये आलुक वर्ग में जिस प्रकार से भूल, कन्द स्कन्ध, स्वचा आदिक दश उद्देशक कहे गये हैं-उसी प्रकार से इस वर्ग में भी वे उद्देशक कहना चाहिये-इस प्रकार शालिवर्ग के अतिदेश से संपन्न आलुक वर्ग का अतिदेश किया गया है तथा-शलिकवर्ग में पुष्प आदि में देवों की उत्पत्ति कही गई है परन्तु वंशवर्ग में तो कहीं पर भी देवों की उत्पत्ति चंडीग' ५।-भा२ पा!-भगवाjी, भ७२२सा, Preी भारी, ती, અને ચંડી જે આ સાધારણ અને બાદર વનસ્પતિકાયિકે છે, તેઓના મૂળ રૂપથી જે જી ઉત્પન્ન થાય છે; તેઓ ત્યાં કયાંથી આવીને उत्पन्न याय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामी ४ छ-'एव पत्थ वि मूलादीया दुप्त उहेसगा आलुकवासरिता' 8 गौतम! मा વર્ગમાં કહ્યા પ્રમાણે અહિંયા પણ મૂળ વિગેરે દસ ઉદ્દેશાઓ સમજવા. અર્થાત્ આલુક વર્ગમાં જે પ્રમાણે મૂળ, કંદ, સ્કંધ, ત્વચા-છાલ, વિગેરે સંબંધી દસ ઉદ્દેશાઓ કહ્યા છે, એ જ રીતે મૂળ, કંદ, અંધ, ત્વચા, વિગેરે સંબંધી દસ ઉદ્દેશાઓ આ વર્ગમાં પણ સમજવા. આ રીતે શાલીવર્ગને બહાનાથી કહેલા આલુક વર્ગમાં વંશવર્ગને અતિદેશ (બહાનું) કહેલ છે. તથા શાલીવર્ગમાં પુષ્પ વિગેરેમાં દેવની ઉત્પત્તિ કહી છે, પરંતુ વંશવર્ગમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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