SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२३३.३ अवकादिवनस्पतिकायजीवोत्पत्त्यादिनि० ३२७ कन्दादिका बीजान्ताः आलुमवर्गवदेव पठनीया स्तत्रतत्र च जीवानामु पादस्थित्यादिका अपि चिन्तनीयाः । यदिह आलुकवर्गाद् वैलक्ष्यं तत् सूत्रकारः स्वयमेव दर्शयति, ‘णवरं' इत्यादि । 'नवरं ओगाहणा तालबग्गसरिसा' नवरम्केवलम् अवगाहना तालवर्गसदृशी वक्तव्या, अवगाहना यथा जीवानां तालवर्गे कथिता तयैव इहापि ज्ञातव्या, तथाहि-अवगाहना मूले कन्दे च धनापृथक्त्वं द्विधनुरारभ्य नवधनुः पर्यन्ता स्कन्धे त्वचि शाखायां च गव्यून (क्रोश) पृथक्त्वम्, द्विकोशादारभ्य नवक्रोशपर्यन्ता । वाले पत्रे च धनुःपृथक्त्वम् द्विधनुरारभ्य नवधनुः पर्यन्ताऽवगाहना । पुष्पे चावगाहना हस्तपृथक्त्वम् द्विहस्तादारभ्य नवहस्तपर्यन्ता। फले बीजे अशुलपृथक्त्वम् द्वयालादारभ्य नाङ्गुलपर्यन्ता, सर्वेषामियम् उपरि दर्शिताऽवगाहना उत्कृष्टतो ज्ञेया, जघन्येन तु सर्वेषां मूलकादि कन्द आदि बीज तक के दश उद्देशक कहना चाहिये और वहां २ जीवों के उत्पाद स्थिति आदि का विचार भी करना चाहिये आलुकवर्ग की अपेक्षा जो इसवर्ग में विलक्षणता है वह सूत्रकार स्वयं 'णवरं' आदि पद से प्रकट करते हैं और कहते हैं कि 'ओगाहणा तालवग्गसरिसा यहां पर अवगाहना का विचार तालवर्ग के जैसा है अर्थात् अवगाहना मूल एवं कन्दवार में धनुः पृथक्त्व है स्कन्ध और त्वचा में तथा शाखा में गव्युतपृथक्त्व है-दो कोश से लेकर ९ कोशतक की है, प्रवाल और पत्र में धनुः पृथक्त्व है-दो धनुष से लेकर ९ धनुषतक की है पुप्प में अवगाहना हस्तपृथक्त्व है २ हाथ से लेकर ९ हाथतक की है फल और बीज में अंगुलपृथक्त्व है-२ अंगुल से लेकर ९ अंगुलतक की है यह प्रदर्शित अवगाहना उत्कृष्ट से कही गई जाननी चाहिये સુધીના દશ ઉદ્દેશાઓ કહી લેવા, અને ત્યાં ત્યાં જીવોના ઉત્પાદ-ઉત્પત્તિ સ્થિતિ વગેરેને વિચાર પણ કરવું જોઈએ આલુક વર્ગની અપેક્ષાએ આ वर्गमा २३२३२ छ, ते सूत्रा२ २३य ‘णवर विगेरे ५४थी प्रगट ४२ छे, मन छे-ओगाहणा तालवग्गसरिसा' मडियां म नाना पियार તાલ વગ પ્રમાણે કહ્યો છે. અર્થાત્ અવગાહના, મૂળ અને કંદદ્વારમાં ધનઃ પૃથકત્વ છે. સ્કંધ અને ત્વચા-છાલમાં તથા શાખા-ડાળમાં ગબૂત-બે ગાઉ પૃથકૃત્વની છે. એટલે કે બે ગાઉથી લઈને નવ ગાઉ સુધીની છે. પ્રવાલ અને પત્રમાં ધનુ પૃથકૃત્વની છે. એટલે કે-બે ધનુષથી લઈને નવ ધનુષ સુધીની છે. પુપમાં અવગાહના હસ્તપૃથક્વ એટલે કે બે હાથથી લઈને ૯ નવ હાથ સુધીની છે. ફળ અને બી માં આંગળ પૃથકૃત્વની છે. એટલે કે એ આંગળથી લઈને નવ આંગળ સુધીની છે. આ કહેલી અવગાહના ઉત્કૃષ્ટથી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy