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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२३ व.२ लोहीप्रभृतिवनस्पतिजीवोत्पत्त्यादिनि० ३२३ स्कन्धे त्वचि शाखायां च गव्यूतपृथक चम् गव्यूतमिति क्रोशमेकम् । अवाले पत्रे च धनुःपृथक्त्वम्, पुष्पे हस्तपृथक् पम् फछे बीजेवाशुलपृथक्त्वात्मिका अवगाहना, इयं सर्वाऽपि अवगाहना उत्कृष्टतो ज्ञेया, जघन्यावगाहना सर्वत्रापि अशुलस्यासंख्येयभागरूपैव भवतीति' 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव अवगाहनाऽतिरिक्तं सर्वमपि उत्पादस्थितिलेश्यादिकवर्गवदेव द्रष्टव्यं ज्ञातव्यं चेति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति-हे भदन्त ! लोही प्रभृतिकसाधारणशरीरवादरवनस्पतिविशेषाणामुत्पादादिविषये यत् देवानुपियेण निवेदितम् तत् सर्वमेव सर्वथैव सत्यम् अशीन्द्रियपदार्थविषये भवदुपदेशस्यैव गई है, अर्थात् दोधनुषसे लेकर ९ धनुषतक कही गई है-स्कन्ध में, त्वचा में और शाखा में गव्यूत पृथक्त्व-दो कोश से लेकर ९ कोश तक की कही गई है प्राल में और पत्र में धनुःपृथक्त्व कही गई है फल और बीज में अंगुल पृथक्त्व कही गई है। यह मय भी अवगाहना उत्कृष्ट की अपेक्षा से कही गई है ऐसा जानना चाहिये परन्तु जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण ही सर्वत्र जाननी चाहिये 'सेसं तं चेव' अवशिष्ट कथन उत्पाद, स्थिति, लेश्या आदिक सब कथन-आलुकवर्ग के जैसे ही जानना चाहिये 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! लोही आदि साधारण शरीर वाली एवं चादर शरीर वाली जो ये वनस्पतियां हैं- उनके उत्पाद आदि के विषय में जो आप देवानुप्रिय ने निवेदित किया है वह सब ही सर्वथा सत्य ही પૃથકૂવની કહી છે. બે ધનુષથી લઈને ૯ ધનુષની કહી છે,-કંધમાં, છાલમાં અને શાખામાં ગભૂત પૃથફાવ-બે ગાઉથી લઈને ૯ ગાઉ સુધીની કહી છે. પ્રવાલમાં અને પાનમાં ધનુ પૃથક્વની કહી છે. પુપમાં હસ્ત પૃથકત્વની કહી છે. ફળ અને બીજમાં આંગળ પૃથકુવની કહી છે. આ બધી અવગાહના ઉત્કૃષ્ટની અપેક્ષાએ કહેલ છે તેમ સમજવું. પરંતુ જઘન્ય અવગાહના આંગजना असण्यातमा सा प्रमाण अधामा डी छे. तम समन्यु 'सेस' तं चेव' माझीनु तमाम 321 अपात-पत्ति स्थिति, वेश्या, विरो३ सधी तमाम थन मासु 1 प्रमाणे १ समा. 'सेव भंते ! सेव भंतेत्ति'३ ભગવદ્ લેહી વગેરે સાધારણ શરીરવાળી અને બાદર શરીરવાળી વનસ્પતિ ના ઉત્પાત ઉત્પત્તિ વિગેરેના સંબંધમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે નિરૂપણ કર્યું છે, તે સર્વથા સત્ય છે. કેમકે અતીન્દ્રિય પદાર્થોના વિષયમાં આપને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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