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________________ ३२२ भगवतीसत्रे पामुपरिदर्शितानां साधारणशरीरबादरवनस्पतिविशेषाणां ये जीवाः 'मूलताए वकमंति' मूलतया अवकामन्ति-मूलरूपेण उत्पद्यन्ते इत्यर्थः, ते खलु जीवाः कस्मात् स्थानादागत्य समुत्पद्यन्ते इति पूर्ववदेव प्रश्नः । 'एवं एत्थ वि दस उद्दसगा जहेव आलुकबग्गे' एवमत्रापि दशोदेशका यथैवालुकवर्गे कथिताः, यथा आल्लुकवर्गे दश उद्देशका विरचिता स्तत्र सत्र जीवानां यथा यथा उत्पादादिकं चिन्तितं तथैव इहापि दश उद्देशका मुलकन्दस्कन्धत्वकशाखापत्रप्रवालपुष्पफलबीजात्मका ज्ञेया शत्र च तत्तज्जीवानामुत्पादादिकं सर्व विवेचनीयम् विशेषजिघृक्षुभिरालुकवर्ग स्तत्रापि अन्ततः शालिकवर्गः संपूर्णोऽपि द्रष्टव्यः । आलुकबर्गापेक्षया यद्वलक्षण्यं तत् स्वयमेव मूत्रकारो दर्शयति-'नवरं' इत्यादि, 'नवरं ओगाहणा तालवग्गसरिसा' नवरं केवलम् आगाहना तालवर्गसदृशी ज्ञातव्या, तथाहि-मूलकन्दे धनुःपृथक्त्वं द्विधनुरारभ्य नवधनुः-पर्यन्तमवगाहना, आदि वनस्पतियां हैं-सो इन वनस्पतियों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं-वे कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरथिकों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यंचो से आकरके उत्पन्न होते हैं अथवा मनुष्यों से या देवों से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं 'एवं एस्थ वि दस उद्देसगा जहेव आलुयवग्गे' हे गौतम ! आलुकवर्ग में जैसे मूलादिक १० उद्देशक कहे गये हैं वैसे ही १० उद्देशक यहां पर भी कहना चाहिये, विशेष जिज्ञासुओं को आलुकवर्ग और अन्त में शालिकवर्ग संपूर्ण देखना चाहिये, आलुकवर्ग की अपेक्षा यहां जो भिन्नता है उसे सूत्रकार 'नवरं ओगाहणा तालवग्गसरिसा इस पाठ द्वारा प्रकट कर रहे हैं-इसमें यह कहा गया है कि यहां अवगाहना तालवर्ग के जैसी जाननी चाहिये अर्थात् मूल, एवं कन्द में अवगाहना धनुःपृथक्त्व की कही સ્પતિના મૂળ રૂપથી જે જીવ ઉત્પન થાય છે, તેઓ ત્યાં ક્યાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? શું તેઓ નરકથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા તિર્યંચ વગેરેમાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु गौतमस्वाभान ४९ छ ?- एवं एत्थ वि दस उद्देसगा जहेव आलुयवग्गे' હે ગૌતમ આલુક વર્ગમાં મૂલ વિગેરેના જે પ્રમાણે ૧૦ દસ ઉદ્દેશાઓ કહ્યા છે, તેજ પ્રમાણે દસ ઉદ્દેશાઓ અહિયાં પણ સમજવા. વિશેષ જીજ્ઞાસુઓએ આલુ વર્ગ અને અન્તમાં સંપૂર્ણ શાલીવર્ગ સમજ. આલુક વર્ગની અપેक्षाने । ४थनमा ३२३२ छ, तेने सूत्रारे 'नवर ओगाहणा तालवग्गसरिसा' આ પાઠ દ્વારા બતાવેલ છે. આમાં એ વાત કહી છે કે-અહિયાં અવગાહના તાડ વર્ગ પ્રમાણેની સમજવી. અર્થાત્ મૂળ અને કંદમાં અવગાહના ધનુઃ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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