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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२२ ५.४ गुच्छजातीयवनस्पतिमूलगतजीवोत्प०नि० ३०५ ॥ अथ चतुर्थों वर्गः प्रारभ्यते ॥ तृतीयवर्गे अगस्त्यादिबहुवीजकक्षमूलादिनीवानामुत्पादादिकं वर्णितम् , अथ 'वाइंगणि' आदि गुच्छ जातीयवनस्पतिमूलादिजीवानामुत्पादादिकविवेच यितुं चतुर्थों वर्ग आरभ्वते तदनेन संबन्धेन आयतस्य चतुर्थवर्गस्य इदमादिम सूत्रम्-'अह भंते ! वाईगणि' इत्यादि। मूलम्-'अह भंते ! वाइंगणि सल्लइ थुडइ० एवं जहा पन्नवणाए गाहानुसारेण यव्वं जाव गंजपाटला दासि अंकोल्लाणं एएसि जे जे जीवा मूलत्ताए वकमंति० एवं एस्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा नेयम्वा जाव बीयंति निरवसेसं जहा वंसवग्गो ॥सू०१॥ ॥बावीसइमे सए चउत्थो वग्गो समत्तो॥ छाया-'अथ भदन्त ! वृन्ताकी सल्लकी धुडकी० एवं यथा प्रज्ञापनायाः गाथानुसारेण नेतव्यं यावत् गञ्जपाटलादासिअंकोलानाम् एतेषां खलु ये जीवा मूलतयाऽवक्रामन्ति० एवमत्रापि मूलादिका दश उद्देशका नेतव्या यावद्वीजमिति निरवशेषं यथा वंशवर्गः ॥मू०१॥ ॥ द्वाविंशतिशतके चतुर्थो वर्गः समासः॥ चतुर्थ वर्ग का प्रारंभ तृतीयवर्ग में अगस्त्यादिक बहुधीजवाले वृक्षों के मूलगतजीवों के उत्पाद आदि का वर्णन करके अब सूत्रकार 'वाइंगणि' आदि गुच्छजातीय वनस्पति के मूलगत जीवों का विवेचन करने के लिये चतुर्थवर्ग प्रारंभ करते हैं-इस वर्ग का यह 'अह भंते ! वाइंगणि' आदि सूत्र प्रथम सूत्र है-'अह भंते ! घाइंगणि सल्लह धुंडइ०' इत्यादि। ચેથા વર્ગને પ્રારંભત્રીજા વર્ગમાં અગથિયા વિગેરે બહુ બીજ વાળા વૃક્ષના મૂળમાં રહેલા वाना पाई विगेरेनु ४ीने वे सूत्रा२ 'बाई'गणि' विगैरे शुक्र વાળા જાતના વનસ્પતિના મૂળમાં રહેલા ઇવેનું વિવેચન કરવા માટે આ ચોથા વર્ગને પ્રારંભ કરે છે. આ વર્ગનું પહેલું સૂત્ર આ પ્રમાણે છે. 'अह भंते ! वाइंगणि' या भ० ३९ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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