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भगवती सूत्रे
यथं सूत्रे एव प्रदर्शिता इति । सेसं जहा सालीणं' शेषं यथा शालीनाम् शालिकप्रकरणापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तत् सूत्रे एव प्रदर्शितम् यत् शिष्टम् तत् सर्वं शालिक aisदेव द्रष्टव्यम् । इह भवति प्राचीन गाथा
'पत्ते वाले पुष्फे, फले य बीए य होइ उत्रवाओ। रुक्खेसु सुरगणाणं पत्थरसवण्णगंधेसु ॥१॥
छाया - पत्रे वाले पुष्पे फले च बीजे च भवति उपपातः । वृक्षेषु सुरगणानां प्रशस्त रसवर्णगन्धेषु || १ || इति ।
सुरगणानां देवानामुत्पादः - उत्पत्तिः प्रशस्त रसवर्णगन्धवतां वृक्षाणां पत्रे भवाले बीजे च भवति योऽयं प्रशस्तरसवर्णगन्धवान् वृक्षो भवति तस्य मवालादारभ्य बीजान्तेषु देवानामुत्पत्ति भवति नान्यत्र मूलादिपञ्चके इति भावः । एवं
'से से जहा सालीणं' इस पाठ से सूत्रकार ने यह प्रकट किया है कि शालिक प्रकरण की अपेक्षा इस प्रकरण में जो भिन्नता है वह तो हमने सूत्र में ही प्रकट कर दी है पर जहां कोई भिन्नता नहीं है वह सब शालिप्रकरण ही जैसा है अतः उसे प्रकट नहीं किया गया है । यहां प्राचीन-गाथा ऐसी है- 'पत्ते पवाले पुष्फे' इत्यादि ।
इस गाथा द्वारा यह प्रकट किया गया है कि देवों का उत्पाद प्रशस्त रस, वर्ण, गन्ध वाले वृक्षों के पत्र में, प्रचाल में, पुष्प में, फल में और बीज में होता है उनके मूल में, कन्द में, स्कन्ध में, स्वकू में और शाखा में नहीं होता है । 'एवं एए दस उद्देसगा' इस प्रकार से
प्रमाणु सुधीनी छे, तेभ समभवु सेसं जहा सालीण' या पाथी सूत्रठारे એ પ્રગટ કરેલ છે કે-શાલી પ્રકરણની અપેક્ષાએ આ પ્રકરણમાં જે ફેરફાર છે, તે તેા સૂત્રમાંજ ખતાવેલ છે. પરં'તુ જ્યાં ફેરફાર નથી. તે તમામ શાક્ષી પ્રકરણની જેમ જ સમજણનું છે તેથી તે ભાગ ગ્રંથ વિસ્તાર ભયથી અહિ' *हेत नथी. मडियां प्राचीन गाथा या प्रमाये छे - पत्ते पवाले पुप्फे' इत्याहि
આ ગાથાથી એ બતાવેલ છે કે દેવેના ઉત્પાદ પ્રશસ્ત રસ, વણુ. ગન્ધ बाजा वृक्षाना पानमां, पणे, पुण्याभां इमां ने जीलेमां, थाय छे, तेना भूजमां, हम, अधम, छासमां, भने शाखा-डाणीमां थते। नथी. 'एवं एए दस उद्देगा' या रीते या तास नामना पडेला वर्गमां भूण, ४६,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪