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प्रमेय बन्द्रिका टीका श०२१ व. ६ तृणवनस्पतिजीवानामुत्पादादिनि०
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मूढताए वकमंति' ये जीवाः मूलतयाऽत्रक्रामन्ति मूलरूपतया समुत्पद्यन्ते ये जीवाः 'ते गं जीवा कओहिंतो उववज्जंति' ते खलु जीवाः कुतः - केभ्यः स्थानेभ्य आगत्य एतेषां मूलरूपेण उत्पद्यन्ते ? अथाग्रे अतिदेशेनाह - ' एवं ' इत्यादि, 'एवं एत्थ वि दस उगा निरवसेसं जहेब वंसबग्गी' एवमत्रापि दशोदेशका मणितव्या निरवशेषम् यथैव वंशकवर्गः वंशवदेव अत्रापि मूलकन्दस्कन्घत्वक् शाखापवालपत्रपुष्पफलची जान्ता दशोदेशका वक्तव्याः तत्र मूलकोदेश के 'aise iडिय' इत्यादि सूत्र प्रथम सूत्र है'सेडिय मंडिय दम्भकोंतिय' इत्यादि ।
टीकार्थ- सेंडिय से लेकर सुंकलि तृणतक सब तृण जाति के वनस्पतिविशेष हैं गौतम ने प्रभुसे इनके ही विषय में ऐसा पूछा है-हे भदन्त | सेंडिय से लेकर सुंकलि तृण तक जो तृण जाति विशेष हैं सो इनके मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं 'ते णं जीवा कओहिंतो उववज्जंत्ति' वे जीव वहां पर कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरfयक आदि से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - ' एवं एत्थ वि दस उद्देसगा निरवसेसं जहेव वंसवग्गो' हे गौतम ! यहां पर वंशवर्ग के जैसा मूलादिक दश उद्देशक कहना चाहिये, वे दश उद्देशक इस प्रकार से हैं-मूलोद्देशक १, कन्दोद्देशक २. स्कन्धोद्देशक र स्वगुद्देशक : शाखो देशक५, प्रवालोद्देशक६, पत्रोद्देशक७ पुष्पोदेशक८ फलोद्देशक९ और बीजोद्देशक १०, इन उद्देशकों से मूलक
'सेडिय भंडिय' इत्याहि
ટીકા સેડિયથી લઈને સંકુલિ તૃણુ સુધીની બધી તૃણુ જાતની વનસ્પતિ વિશેષ છે. આ વિષયમાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવુ· પૂછ્યું છે કે હે ભગવન્ સેડિયથી લઈને સંકુલિ તૃણુ સુધી જે તૃણુ જાત વિશેષ છે, તેના भूज ३५थी ने वो उत्पन्न थाय छे, 'ते णं जीवा कओहिंतो उववज्जति' તે જીવે ત્યાં કયાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? શું તે જીવા નારક વગેરેમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને अछे - ' एवं एत्थ वि दस उद्देगा निरवसेसं जहेव वसवग्गो' हे गौतम! વંશ-વાંસ વર્ષોંની જેમ અહિંયા મૂળ વિગેરે દસ ઉદ્દેશાઓ સમજી લેવા. તે દસ ઉદ્દેશાઓ આ પ્રમાણે છે. મૂળાવેશક ૧, ક દાદ્દેશક ૨, સ્ક ંધાવેશક ૩, વશુદેશકક૪, શાખે દેશકપ, પ્રવાલેદ્દેશક, પત્રોદ્દેશક, પેદ્દેશક૮, ક્લે શકલ मने पीलेद्देश९१०, या उद्देशाओ। पैडी भूणोशाभां 'सेडिय' थी सर्धने
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪