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________________ मैचन्द्रिका टीका श०२१ व१. उ. १ औषधिवनस्पतिशाल्यादिगतजीवनि० २१९ उत्पलोद्देशकस्य मस्कृतायां प्रमेयवन्द्रिकाव्याख्यायां विलोकनीयमिति । 'माहारो जहा उप्पलुदे से' आहारो यथा उत्पलोद्देशके, तेषां शाल्यादिमूलगतजीवानामाहारोsपि उपदेशक देव ज्ञातव्यः 'ते णं भंते! जीवा किमाहारमाहरेति, 'गोयमा ! coast aaurसाई' ते खलु भदन्त ! जीवाः किमाहारम् - कीटशमाहारम् आहरन्ति - कुर्वन्ति, गौतम ! द्रव्यतोऽनन्तप्रदेशकानि आहरन्ति आहारं कुर्वन्ति इत्यादि सर्व प्रज्ञापनाया अष्टाविंशतितमपदे प्रथमे आहारोदेश के वनस्पतिकायिकानामाहारस्तथैव वक्तव्यमिति । 'ठिई जहन्नेणं अतोमुहुत्तं उक्को सेणं वासपुहुत्तं' स्थि जिज्ञासुओं को उत्पलोदेशक के ऊपर जो मेरे द्वारा प्रमेयचन्द्रिका नाम की व्याख्या लिखी गई है उससे जानना चाहिये - ' आहारो जहा उप्पलुसे' उत्पलोदेशक में आहार के विषय में भी स्पष्टीकरण है-अतः इन शाल्वादिमूलगत जीवों के आहार के विषय में भी वहीं से जान लेना चाहिये जैसे वहां गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'ते पणं भंते! जीवा किमाहारमाहारेति' हे भदन्त । वे जीव कैसा आहार करते हैं ? उत्तर में प्रभु ने कहा है - 'गोवमा ! दव्वओ अनंतपएसाई court' हे गौतम! वे जीव द्रव्य की अपेक्षा अनन्तप्रदेशिक द्रव्यों का आहार करते हैं - इत्यादि सब कथन प्रज्ञापना के अठ्ठाईसवें पद में प्रथम आहारोदेशक में वनस्पतिकायिक जीव के आहार के सम्बन्ध में है सो उसी प्रकार से यहां पर भी करना चाहिये, 'ठिई जहन्नेणं अंतो मुद्दतं उक्को सेणं बासपुहुतं' शाल्यादिमूलगत जीवों की स्थिति जघन्य , જો વિશેષ જાણવાની ઈચ્છા હાય તા જીજ્ઞાસુએએ ઉપલેટ્ટેશક ઉપર મે' જે अमेययन्द्रिा नाभनी टीडा सजी हे तेमांथी समल सेवु ' आहारो जहा उपलुदे से उत्ययादेशाभा आहारता विषयमा पशु स्पष्टी४२ ४३ ४. જેથી આ શાલી વિગેરેના મૂળમાં રહેલા જીવાના આહારના વિષયમાં પશુ ત્યાંથી જ સમજી લેવું. ત્યાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવુ પૂછ્યું છે કેभते ! जीवा किमाहारमाहरेतिं ' डे लगवन्ते वो देव आहार ४२ छे ? तेना उत्तरमा प्रमुखे उछु है - ' गोयमा ! दव्वओ अणतपसाई दव्वाई' હું ગૌતમ ! તે જીવેા દ્રવ્યની અપેક્ષાએ અનન્ત પ્રદેશી દ્રવ્યોના આહાર કરે છે, ઇત્યાદિ સઘળું કથન પ્રજ્ઞાપનાના ૨૮ અઠયાવીસમાં પદમાં પહેલા આહારઉ દેશામાં વનસ્પતિકાયિક જીવના આહારના સંબંધમાં કહ્યું છે, એજ રીતે અહિયાં પણ सम बेवु' 'ठिई जहन्नेणं अतोमुहुत्त उनकोसेणं बासपुहुत्तं ' शादी विजेरे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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