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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २० उ.१० सू० ४ नैरयिकाणां द्वादशादिसमर्जितत्वम् १९३ सूत्रापेक्षया वैलक्षण्यं दर्शयति-'नवरं अभिलाको चुलसीइओ' नवरम् अमिलापः यत्र षट्कसमर्जिता इति षट्कसूत्रे कथितम् तत्रेह चतुरशीतिसमनिता इति वक्तव्य. मिति ! 'एएसिणं भंते !' एतेषां खलु भदन्त ! 'सिद्धाणं' 'सिद्धनाम्' चुलसीइ. समज्जियाणं नो चुलसीइसमज्जियाणं चु सीईए य नो चुरसोईए य समज्जियाणं' चतुरशीतिसमनितानाम् १, नो चतुरशीतिसमर्जिगानाम् २, चतुरशीत्या नो चतुरशीत्या च समनितानाम् ३, एषां त्रयाणां मध्ये 'कयरे कयरेहिंतो जाब विसेसा हिया वा' कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वेति प्रश्नः । उत्तरमाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सबत्थोवा सिद्धा जीवों का अल्प बहुत्व जानना चाहिये, परन्तु इसमें सिर्फ षट्क और चतुरशीतिपद को लेकर ही भिन्नता है और कोई भिन्नता नहीं है, षट्क सूत्र में जैसे षट्पद को लेकर षट्कसमर्जित ऐसा अभिलाप कहा गया है वैसे ही यहां 'चतुरशीति' पद को जोड़ कर चतुरशीतिसमर्जित आदि अभिलाप कहना चाहिये, अब सूत्रकार प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'एएसि णं भंते! सिद्धाणं चुलसीइसमज्जियाणं, नो चुलसीइसमज्जियाणं चुलसीईए य नो चुलसीईए य समज्जियाण' हे भदन्त ! सिद्धों में जो ये तीन विकल्पकहे गये हैं-जैसे कि एक चतुरशीतिसमनित सिद्ध १ नो चतुरशीतिसमर्जित सिद्ध २ और एक चतुरशीति और एक नो चतुरशीतिसजित सिद्ध ३ सो इन में कौनसे सिद्धों की अपेक्षा कौनसे सिद्ध अल्प हैं ? और कौनसे बहुत हैं १ कौन से तुल्य हैं ? और कौन से विशेषाधिक हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं -गोयमा ! सव्वत्थोषा અલ્પ-અને બહુપણુ સમજી લેવું. તેમાં ફક્ત એટલો જ ફેર છે કે છે સમજીતમાં ષક ૫દ આવે છે તથા અહિયાં “ચર્યાશી પદ કહેવું જોઈએ આ સિવાય અન્ય કઈ પ્રકારે ભિન્નતા આવતી નથી. वे सूत्रा२ प्रभुने मे पूछे छे है-'एएसि णं भंते ! सिद्धाणं, चुलसीइसमज्जियाण, नो चुलसीइसमज्जियाण, चुलसीईए य, नो चुलसीईए य, समज्जियाण' 8 भगवन् सिalvi 2 त्रय वि८ ह्या छ, भोએક ચોર્યાશી સમજીત સિદ્ધ૧ ને ચર્યાશી સમજીત સિદ્ધ ૨ તથા એક ચોર્યાશી અને એક ને ચર્યાશી સમજીત સિદ્ધ ૩ આ સિદ્ધોમાં કયા સિદ્ધોની અપેક્ષાએ ક્યા સિદ્ધો અ૯પ છે? કયા સિદ્ધ કયા સિદ્ધોથી અધિક છે અને ક્યા સિદ્ધ કયા જિદ્ધની બરાબર તુલ્ય છે? અને ક્યા સિદ્ધ કયા સિદ્ધોથી વિશેષાધિક छ१ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -'गोयमा! सव्वत्थोवा सिद्धा चुल. अ० २५ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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