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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सू०४ नैरयिकाणां द्वादशादिसमर्जितत्वम् १८७ अप्कायिकादारभ्य वनस्पतिकायिकपर्यन्तानामपि चतुर्थपञ्चमविकल्पो-चतुरशीतिकैः समर्जिता'४ चतुरशीतिकैश्च नो चतुरशीत्या च समर्जिताः५, इत्याकारको ज्ञेयाविति । 'बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरझ्या' द्वीन्द्रिया यावद्वैमानिका यथा नैरयिकाः, यथा नारकाः पश्चापि विकल्पविकल्पितास्तथा द्वीन्द्रियादारभ्य वैमनिक पर्यन्तानामपि पञ्चविकल्पैः समर्मितत्वं ज्ञेयमिति ! 'सिद्धा णं पुच्छा' सिद्धाः खलु इति पृच्छा. हे भदन्त ! सिद्धाः किं चतुरशीति समर्जिताः१, नो चतुरशीतिसमजिताः२, चतुरशीत्या नोचतुरशीत्या वा समर्जिताः३, चतुरशीतिभिः समर्जिताः४ चतुरशीतिभिश्च नो चतुरशीत्या च वा समर्जिताः५ इति प्रश्नः । भगवानाहपंचम विकल्प कहे गये हैं उसी प्रकार से अपमायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक के जीवों के भी चतुर्थ और पंचम विकल्प कहे गये हैं-वे चतुर्थ पंचम विकल्प ये हैं -'चतुरशीतिकैः समर्जिताः४, चतुरशीतिकैश्च नो चतुरशीत्या च समर्जिताः 'बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया' जिस प्रकार चतुरशीति प्रकरण में नैरथिकों को पांचों विकल्पवाला प्रकट कियागया है उसी प्रकार से द्वीन्द्रिय से लेकर वैमानिक तक के भी जीवों को पांचों विकल्पोंचाला जानना चाहिए 'सिद्धाणं पुच्छा' अब गौतम प्रभु से पूछते हैं हे भदन्त ! सिद्ध जीव क्या चतुरशीति से समर्जित होते हैं ? या नो चतुरशीति से समर्जित होते हैं २ या एक चतुरशीति और एक नो चतुरशीतिसे समर्जित होते हैं ३ या अनेक चतुरशीति से समर्जित होते हैं या अनेक चतुरशीति से और एक नो चतुरशीति से समर्जित होते અને ચે અને પાંચમે વિકલ્પ કહ્યો છે, એજ રીતે અષ્કાયિકથી લઈને વનસ્પતિકાયિક સુધીના જીવને પણ ચોથે અને પાંચમે વિકલ્પ કહ્યો છે. તે थे। भने पाया ४ि६५ मा प्रभारी छ.-'चतुरशीतिकैः समर्जिताः४, चतुर. शोतिकैश्च नो चतुरशीत्या च समर्जिताः' भने कार्याशीथी सम डाय छे. ४ अन यायाशीथी मने ये ना यायाशीथा समत य छे. ५ 'बेइंदिया जाव वेमाणिया जहा नेरइया' २ प्रमाणे याशी समत ४२६मा नारકીને પાંચ વિકલપોવાળા કહ્યા છે, એજ રીતે બે ઇન્દ્રિય જીથી લઈને વૈમાનિક સુધી જી પણ પાંચ વિકલવાળા સમજવા. सिद्धा णं पुच्छा' 6 गीतमाभी भुने मे पूछे छे 2-3 सावन સિદ્ધ જ શું ચોર્યાશી સંમત હોય છે? અથવા નો ચોર્યાશી સમત હોય છે? અથવા એક ચર્યાશી અને એક ને ચોર્યાશી સમજીત હોય છે? અથવા અનેક ચર્યાશી સમજીત હોય છે? અથવા અનેક ચાર્યાશીથી અને એક ને ચોર્યાશીથી સમજીત હોય છે ? ૫, આ રીતના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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