SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीसूत्रे 'पुढवीकाइया नो बारससमज्जिया' पृथिवीकायका जीवाः नो द्वादशसमर्जिताः नो-नैव द्वादशकेन समर्निता भवन्ति१, 'नो नोबारससमज्जियार' नो नो द्वादशसमर्जिताः पृथिवीकायिका नो द्वादशसमर्जिता अपि न भवन्तीतिर । 'नो बारसरण य नो बारसरण य समज्जिया३' नो-न वा द्वादशकेन च नोद्वदाशकेन च समर्जिता भवन्ति३ । अत्र भङ्गत्रयस्य निषेधः। किन्तु 'बारसहि समज्जिया' द्वादशकैः समर्जिताः, अनेकाभिादशसंख्यामा एकसमये सहैव जायमानत्वात्, द्वादशकैः समर्जिताः कथयन्ते। 'बारसेहि य नोवारसएण य समन्जिया वि' द्वादशकैश्च नोद्वादशकेन च समर्जिता अपि, अनेकाभिादशसंख्याभिस्तथा नो द्वादशकेन च समर्जिता भवन्ति पृथिवीकायिका जीवाः । अत्र प्रथमद्वितीयगौतम से ऐसा कहते हैं कि हे गौतम ! 'पुढ बीकाइया नो धारमसम समज्जिया १' पृथिवीकायिक द्वादश समर्जित नहीं होते हैं १ 'नो नो पारससमज्जिया' नो द्वादशक समर्थित नहीं भी होते हैं २ 'नो बारसएण य नोबारसरण य समज्जिया' और एक द्वादश एवं एक नो द्वादशक समर्जित नहीं होते हैं । इस प्रकार के इन तीन भङ्गों का यहां निषेध है। वे पृथिवीकायिक जीव 'बारसएहि समज्जिया४' अनेक द्वादशों से समर्जित होते हैं -अर्थात् एक समय में अनेक १२ की संख्या में ये साथ साथ उत्पन्न हो जाते हैं इन्हें इसलिये अनेक द्वादशों से समर्जित कहा गया है तथा-'पारसेहि य नो बारसरण य समज्जिया वि' ये पृथिवीकायिक जीव अनेक द्वादशों की संख्या से एक समय में उत्पन्न हो जाते हैं तथा नो द्वादशक से भी उत्पन्न हो जाते हैं-इसलिये ये अनेक द्वादश संख्याओं से और एक नो बादशक से समर्जित भी है गौतम ! 'पुढवीकाइया नो बारससमज्जिया' पृथ्वीयि। समत डात नथी १ 'नो नो बारसम्मज्जिया' नावा सभ प डा नथी २ 'नो बारसरण य नो बारसएणय समज्जिया३' तेम ४ दश भने । ન દ્વાદશથી સમજીત હોતા નથી ૩ આ રીતે આ ત્રણે ભેગેને તેઓમાં निषेध रेत छ, तथा ते पृथ्वीयि ७३ 'बारसेहि समज्जिया४' भने દ્વાદશોથી સમજીત હોય છે. અર્થાત એક સમયમાં અનેક ૧૨ બારની સંખ્યામાં તેઓ એક સાથે ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તેથી તેઓને અનેક વાદशायी सभात ह्या छ. तथा 'बारसेहि य नो बारसरण य समज्जिया वि' से પૃથ્વીકાયિક જીવે અનેક દ્વાદશોની સંખ્યાથી એક સમયમાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તથા ને દ્વાદશથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી તેઓ અનેક દ્વાદશની સંખ્યાઓથી અને એક ને દ્વાદશથી પણ સમજીત કહેવામાં આવ્યા છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy