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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.१० सू०३ नैरयिकादीनां षट्कादिसमर्जितत्वम् १५७ इदं च नारकादीनां पश्चापि विकल्पाः संभवन्ति एकादीनाम् असंख्यातान्तानां तेषां नारकादीनाम् एकसमयेन उत्पत्तिसंभवात् , असंख्यातेष्वपि च ज्ञानिन: षटकानि व्यवस्थापयन्तीत्याशयेन भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि। 'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया छक्कसमज्जिया वि' नैरयिकाः षट्रक समर्जिता अपि १, 'नो छक्कसमज्जिया विर' नो षट्कसमर्जिता अपि २, 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया वि ३, षट्केन च नो षट्केन च समर्जिता अपि ३, 'छक्केहि य समज्जिया वि ४', षट्कैश्च समर्जिता अपि ४, 'छक्केहिय नो छक्केण य समज्जिया वि ५' षट्कैश्च नो षट्केन च समर्जिता अपि, ५, हे गौतम ! तदेवं नारकादि. जित हैं तात्पर्य इसका ऐसा है कि एक समय में जो उत्पन्न होते है उनकी जो राशि है वह यदि षट् प्रमाणवाली है तो वह राशि षट्क समर्जित कहलावेगी नो षट्क-छठे का जो अभाव है वह नो षट्क है ऐसा वह नो षट्क एक से लेकर पांच तक होता है इसी प्रकार से अन्यत्र भी समझ लेना चाहिये ऐसे इन पांच विकल्परूप प्रश्नों वाले नैरयिक होते हैं क्या ? तब इन प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! 'नेरइया छक्कसमज्जिया वि' नैरयिक षट्कसमर्जित भी होते हैं 'नो छकसमज्जिया' नो षट्समजित भी होते हैं, 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया वि' एक षट्क से और एक नो षट्क से भी समर्जित होते हैं 'छक्केहि य समजिजया वि' अनेकषट्क की संख्या से भी समर्जित-उत्पन्न होते हैं तथा 'छक्के हिं य नो छक्केण य सम. ज्जिया" अनेक षट्कों से और एक नो षट्क से भी उत्पन्न होते हैं આ ષકની જે રાશી-ઢગલે હેય છે તે ષટ્રક સમજીત કહેવાય છે, આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે-એક સમયમાં જે ઉત્પન્ન થાય છે, તેને જે ઢગલે છે, તે જે છ પ્રમાણુવાળ હેય તે તે ઢગલે ષક સમજીત કહેવાય છે, ને ષક-છાને જે અભાવ છે, તે ન ષટ્રક કહેવાય છે. એવું તે ને ષ એકથી લઈને પાંચ સુધી હોય છે. એજ રીતે બીજે પણ સમજી લેવું. એવા આ પાંચ વિક૯૫ રૂ૫ પ્રશ્નોવાળા નૈરયિકો હોય છે? આ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં प्रभु छ -'गोयमा ! गौतम ! 'नेरइया कसमज्जिया वि' नाया षट् सभळत ५ सय छ, 'नो छक्कसमज्जिया वि' ना ५८४ समत पर होय छे. 'छक्केण य नो छक्केण य समज्जिया वि' मे पट्था भने सेन पट्थी ५५४ समय छे. 'छक्केहि य समज्जिया वि' भने षट्पनी सभ्याथी सभ-3५. थाय छ तथा 'छक्केहि य नो लक्केण य समज्जिया ५' मने पदाथा भने मे । पट्या पण उत्पन्न यायचे, શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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