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भगवती सूत्रे
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'जाव किंचि सिसेसाहिए परिवखेवेण पण्णत्ते' यावत् किञ्चिद्विशेषाधिकः परिक्षेवेण प्रज्ञप्तः, जम्बूद्वीपपरिधिपरिमाणं पूर्व प्रदर्शितमेवेति । पुनश्च - 'देवे णं महिड्रिए जात्र महासोक्खे' देवः खलु महर्द्धिको महायशा महाबलो महाद्युतिको महासौख्यः 'जाव इणामेव चिकट्ट' यावदिदमेवेति कृत्वा यावत्तावता कालेन साम्प्रतमेव आगच्छामीति कथयित्वा 'केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्छरा निवाएहि केवलकल्पम् - सम्पूर्णम् जम्बूद्वीपं द्वीपम् त्रिभिरप्सरोनिपातैरिति, अयमर्थः - अप्सरोनिपातः अप्सरसोऽवतरणम्, तस्य कालः अतिसूक्ष्मो भवेदित्यनेन काल उपमितः, स च चप्पुटिकामात्र इति विसृभिः चप्पुटिकाभिः, त्रिचप्पुटिकापरिमितका लेनेत्यर्थः । इति पर्यन्तं विद्याधारणप्रकरणं वाध्यम्, वैशिष्टयकि कोई महाऋद्धिवाला, यावत् महायशवाला, महाबलवाला, महाद्युतिवाला और महासुखवाला देव पूर्वोक्त प्रमाण की परिधिवाले इस जम्बूद्वीप की तीन चुटकी बजाने में जितना समय लगता है- इतने समय में तीन बार प्रदक्षिणा करके वापिस अपने स्थान पर आ जाता है, ऐसी शीघ्रगति विद्याचारण की होती है इत्यादि सो वही सब कथन जंचाचारण की शीघ्रगति को प्रगट करने के लिये यहां पर कहना चाहिये यहां 'अप्सरोनिपात' का तात्पर्य चुटकी से है अप्सरा के अबतरण का काल अतिसूक्ष्म होता है इसीसे काल को यहां उपमित किया है और इसे एक चुटकीरूप कहा गया है पूर्वोक्त इस कथन से जंघा - चारण के समय में जो कुछ विशेषता है वह 'नवरं' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रगट की गई है। और वह इस प्रकार से कही गई है कि विद्याचारण के द्वारा इस संपूर्ण जंबूदीप की प्रदक्षिणा जैसे तीन चुटकी बजाने प्रेम उडेवामां यान्यु छे, डे हैं। महाऋद्धिवाणी हेव, यावत्-भडायशવાળા મહાબળવાળા, મહાદ્યુતિવાળા અને મહાસુખવાળા દેવ પૂર્વોક્તપ્રમાણુની પરિધિવાળા આ જ મૂદ્દીપતી ત્રણુ ચપટી વગાડવામાં જેટલા સમય લાગે તેટલા સમયમાં ત્રણવાર પ્રદક્ષિણા કરીને પાછા પોતાના સ્થાને આવી જાય છે, એવી શીઘ્રગતિ વિદ્યાચારણની હેાય છે. ઈત્યાદિ તે સઘળું કથન જબ્રાथारगुनी शीघ्रगतिने प्रगट उरवा महिं समल सेवु मडियां 'अप्सरो નાતેં'નુ' તાત્પ ચપટીથી છે. મસરાના અવતરણના સમય અત્યંત સૂક્ષ્મ ડાય છે. તેથી અહિયાં કાળની ઉપમા આપી છે અને તેને એક ચપટી રૂપ કહેલ છે. પૂર્વીક્ત આ કથનથી જ ઘાચારણના સમય કથનમાં જે કાંઈ વિશેષ
छे ते 'नवर" विगेरे सूत्रपाठथी प्रगट रेस छे भने ते आाप्रमाणे उडेल છે. કે વિદ્યાચારણુ દ્વારા આ સ ́પૂર્ણ જમૂદ્રીપની પ્રદક્ષિણા જેમ ત્રણ ચપટી
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪