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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०९ सू०२ जवाचारणस्य गत्यादेनिरूपणम् ९९ लब्धिनाम्नी लब्धिः-अतिशयविशेषः 'समुप्पज्जइ' समुत्पद्यते-आविर्भवति इत्यर्थः यया लब्ध्या आकाशगमनं भवति तादृशी लब्धिः प्रादुर्भवतीति भावः । 'से तेणढेणं जाव जंघाचारणार' तत्तेनार्थेन यावत् जंघावारणाः२, हे गौतम ! अनेन कारणेन कथयामि यदीमे जंघाचारणशब्दव्यपदेश्या जंघोपरिकरस्पर्शमाप्रेणैव गमनागमनसमर्था भवन्तीति । 'जंघाचारणस्त णं भंते !: जंघाचारणस्य खलु भदन्त ! 'कहं सीहा गई कीदृशी शीघ्रा गतिः 'कहं सीहे गतिविसए' कीदृशा शीघ्रो गतिविषयः पनत्ते' प्रज्ञप्त इति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे' अयं खलु जम्बूद्वीपो द्वीपः 'एवं जहेव बिज्जा. चारणस्स' एवं यथैव विद्याचारणस्य विषये कथितं तथैवात्रापि विज्ञेयम्, तथा च. वासित करते हैं उनको जंघाचारण नामकी लब्धि प्राप्त हो जाती है. प्रकट हो जाती है-यह लब्धि एक अतिशयविशेषरूप होती है इस लब्धि के प्रभाव से इस लब्धिवाले का गमन आकाश में होता हैं इसी कारण से हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि ये जंघाचारण शब्द द्वारा व्यपदेश्य होते हैं। क्योंकि ये जंघा पर हाथ रखने मात्र से ही आकाश में गमन करने में समर्थ हो जाते हैं। अब गौतम इनकी गति कैसी शीघ्र होती है और कैसा उस शीघ्रगति का विषय होता है-इस प्रश्न को 'जंघाचारणस्स णं भंते ! कहं सीहा गई, कहं सीहे गईविसए०' इस सूत्रपाठ द्वारा पूछते हैं-इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं-'गोयमा! अयण्णं जंबूहीवे दीवे एवं जहेव विज्जाधारणस्स०' हे गौतम! विचाचारण की शीघ्रगति को प्रकट करने के लिये जैसा पहिले कहा गया है વાસિત કરે છે, તેઓને જ ઘાચરણ નામની લબ્ધિ પ્રાપ્ત થાય છે. પ્રગટ થાય છે, આ લબ્ધિ એક એક અતિશય વિશેષરૂપ દેય છે. આ લબ્ધિના પ્રભાવથી આ લબ્ધિવાળાનું ગમન આકાશમાં થાય છે. એ જ કારણથી છે ગૌતમ! હું એમ કહું છું કે-આ જંઘા ચારણ શબ્દથી કહેવાય છે. કેમકે તે જાંઘા ઉપર હાથ રાખવા માત્રથી જ આકાશમાં ગમન કરવામાં સમર્થ થઈ જાય છે.
હવે ગૌતમસ્વામી તેઓની ગતિ કેટલી શીધ્ર હોય છે અને તે શીઘगतिना विषय वा डाय छ १ . प्रश्न 'जंघाचारणस्स गं भंते! कह सीहा गई कह सीहे गइविसए०' या सूत्रा४थी पूछे छे. या प्रना उत्तरमा प्रभु तम्मान ४३ छ- 'गोयमा ! अयगं जंबुद्दीवे दीवे एवं जहेव विष्जाचारणस्न' गौतम ! विधायानी | गति मत।११५ भाटे पहा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪