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________________ - - - --- - भगवतीय इयविशालं जम्बूद्वीपं च पुष्टिकात्रयमात्रेण त्रिवारं परिभ्रम्य स्वस्थानमागच्छेदिति भावः। 'विज्जाचारगस्स णं गोयमा ! तहा सीहा गई तहा सीहे गइविसए पण्णत्ते' विद्याचारणस्य खलु हे गौतम ! तथा शीघ्रगतिस्तथा शीघ्रो गतिविषयः मशतः, यथा स शीघ्रगामी देवो योऽतिविस्तृतमपि जम्बूद्वीपं चप्पुटिकायमाने. जैव त्रिवारं जम्बुद्वीपं परिभ्रमति ताशी एव शीघ्रागति विषाचारणस्येति भावः। 'विज्जाचारणस्स णं भंते' विद्याचारणस्य खलु भदन्त ! 'तिरिय केवइए गतिविसए पनत्ते' तिर्यक् किया कि प्रमाणको गतिविषयः प्राप्तः गमनक्रियाविषयं तं क्षेत्र कियदितिप्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! से णं इओ एगेणं उप्पारणं' स खलु-विद्याचारणो हि इतः-एतस्मात् स्थानात् यत्र स्थितो विद्यते तस्मात् स्थानात् 'एगेणं उप्पारणं' एकेन उत्पातेन, माणुसुत्तरे पवए' मानु. पोचरे-एतनामके पर्वते 'समोसरणं करे' समवसरणं करोति मानुषोत्तरपर्वते पूर्वोक्त परिधिवाले जम्बूद्वीप को तीन चुटकी बजाने के जितने समय में तीन बार घेर कर वापिस अपनी जगह पर आ जाता है-'विज्जाचारणसणं गोयमा ! तहा सीहा गई तहा सीहे गाविसए पनत्ते' तो जैसी देव की गति शीघ्रतावाली होती है ऐसी ही शीघ्रतावाली गति विद्याचारण की होती है तथा इतना विशाल क्षेत्र उसकी उस गति का विषय होता है, अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'विजजाचारणस्स णं भंते! तिरियं केवइए गतिविसए पन्नत्ते' हे भदन्त ! विद्याचारण की तिर्यग्गति का विषय कितना बडा कहा है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा ! से णं इओ एगेणं उप्पाएक०' हे गौतम! वह इस स्थान से कि जहां वह मौजूद है-खडा है-एक ही उत्पात में मानुषोत्तरपर्वत છે. અર્થાત્ પૂર્વોક્ત પરિધિવાળા જંબુદ્વીપને ત્રણ ચપટી વગાડતા સુધીના अभयमा पा२ ३शन पा! पाताने त्याने मावी नय छे. 'विज्जाधारणस्त्र ण गोयमा! तहा सीहा गई तहा सीहे गइविसए पण्णत्ते' वनी वी શીવ્ર ગતિ હોય છે, એવી જ શીવ્રતાવાળી ગતિ વિદ્યાચારની હોય છે તથા એટલું વિશાળ ક્ષેત્ર તેની તે ગતિનો વિષય હોય છે. व गौतमस्वामी प्रभुने से पूछे छे है-'विज्जाचारणस्न णं भंते ! तिरियं केवइए गतिविसए पणत्ते' मापन विधायानी तियातिन। વિષય કેટલું વિશાળ કહ્યો છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે'गोयमा। से णं इओ एगेणं उप्पाएण' 3 गौतम ते ॥ स्थानथाल्यो તે વિદ્યમાન છે. -ઉભે છે, ત્યાંથી એક જ ઉત્પાતમાં માનુષેત્તર પર્વત પર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૪
SR No.006328
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 14 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages671
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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