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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०६ सु०२ परमाणौ वर्णादिनिरूपणम् ८३ यावत् पञ्चरसः, द्वौ गन्धौ, चत्वारः स्पर्शाः, पञ्चवर्णाः पञ्चरसा एषु पाप्यन्ते इति भावः । 'मुहुमपरिणए णं भंते !' सूक्ष्मपरिणतः खलु भदन्त ! 'अणंतपएसिए खंघे अनन्तमदेशिकः स्कन्धः अनन्तमदेशिको बादरपरिणामोऽपि स्कन्धो भवति द्वयणुकादिस्तु सूक्ष्मपरिणाम एव अतोऽनन्तप्रदेशिकस्कन्धे सूक्ष्मपरिणाम इति विशेषण दत्तम् , तथा च सूक्ष्मपरिणामवान् अनन्तप्रदेशिकादिरूपस्कन्धः 'कइवन्ने' कतिवर्णः सूक्ष्मादिस्कन्धे कियन्तो वर्णाः एवं कतिगन्धाः, कविरसाः, कतिस्पर्शा भवन्तोति प्रश्नः, भगवानाह-'जहा' इत्यादि । 'जहा पंचपएसिए तहेव यावत् कदाचित् पाँचवर्ण होते हैं । कदाचित् एक रस होता है, कदाचित् दो रस होते हैं, कदाचित् तीन रस होते हैं कदाचित् चार रस होते हैं, कदाचित् पांच रस होते हैं। मतलब कहने का यह है कि इनमें पांच रस, दो गन्ध, चार स्पर्श, पांचवर्ण और पांच रस पाये जाते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'सुहुमपरिणए णं भंते ! अणं. तपएसिए खधे कहवन्ने हे भदन्त !जो अनन्तप्रदेशिकस्कन्ध सूक्ष्मपरिणामवाला होता है वह कितने वर्णों वाला होता है ? कितने गंधोंवाला होता है ? कितने रसोंवाला होता है ? कितने स्पर्शो वाला होता है ? यहां जो 'सुहमपरिणए' ऐसा विशेषण अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को दिया गया है वह बादपरिणाम की व्यावृत्ति के लिये दिया गया है। क्योंकि अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध चादर परिणामवाला भी होता है। वध. णुकादिकस्कन्ध तो सूक्ष्मपरिणामवाले ही होते हैं। इस प्रश्न के उत्तर થાવત કઈવાર બે-ત્રણ ચાર-અને પાંચ સ્પર્શ હોય છે. કહેવાનો હેત એ છે કે છ પ્રદેશવાળા સ્કંધમાં પાંચ વર્ણ, બે ગંધ, પાંચ રસ ચાર સ્પર્શ डाय छे. तम सभा व गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे -"सुहमपरिणए णं भंते ! अणंतपएसिए खंधे कइवन्ने" उ लगवन् रे मन त प्रशवाणा २७५ सक्षम પરિણામવાળા હોય છે. તે કેટલા વર્ષોવાળા હોય છે? કેટલા ગંધવાળા હોય છે? કેટલા રસવાળા હોય છે? અને કેટલા સ્પર્શીવાળા છે. અહિયાં सहमपरिणए" से प्रभानु विशेष मनात प्रशी २४ धने मापामा આવ્યું છે. તે બાદર પરિણામની વ્યાવૃત્તિ માટે આપવામાં આવ્યું છે કેમ કે અનંત પ્રદેશવાળા સ્કંધ બાદર પરિણામવાળા પણ હોય છે. ચાલુકાદિ કંધ તે સૂક્ષમ પરિણામવાળા જ હોય છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે 2-"जहा पंचपएसिए तहेव निरवसेसं" 3 गौतम! पांय प्रशाणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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