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________________ प्रमेयचन्द्रिका रीका श०२० उ.५ १० १० परमाणुप्रकारनिरूपणम् ९५१ अदाबः, यथाऽग्निना कष्ठादि दह्यते सावयवत्वात् न तथा परमाणुवयादिना दग्धुं शक्योऽतिम्रक्षमस्वादतोऽदाह्य इति कथ्यते, अतएव 'अगेज्झे अग्र ह्यः अतिसूक्ष्मादित्वात् हस्तादिना चक्षुरादिना वा ग्रहीतुमयोग्यस्वाद , अग्राह्य इति कथ्यते सावयवस्य स्थूलत्वं प्राप्तस्यैव पदार्थस्य हस्तादिना ग्रहणं चक्षुरादिना वा ग्रहणं जायतेऽयं तु परमाणुरतिसूक्ष्मवादवयवरहितत्वात् च कथमपि ग्रहीतुं योग्यो न भवतीत्यतोऽग्राह्य इति कथ्यते । द्रव्यपरमाणु विभागशो दर्शयित्वा तदनन्तरं क्षेत्रपरमाणु स्वरूपं सविभागं दर्शयितुमाह-'खेतपरमाणू' इत्गदि, 'खेत्तपरमाणू णं भंते ! काविहे पनत्ते' क्षेत्रपरमाणुः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः-कतिप्रकारकः कथित इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा! चउबिहे पन्नत्ते' हे गौतम ! क्षेत्रपरमाणुश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः । प्रकारभेदमेव होने से काष्ठादिक पदार्थ ही अग्नि द्वारा दाह्य (जलनेवाला) होते हैं अवयव रहित होने से परमाणु दाह्य नहीं हो सकता है 'अगेज्झे' इसी कारण इसे अग्राह्य कहा गया है, हाथ या चक्षुरादिक इन्द्रियां न इसे ग्रहण कर सकती है, और न इसे देख ही सकती हैं, इसलिये इसे अग्राह्य कहा है सावयव (अवयवसहित) पदार्थ का ही जो कि स्थूल भाव को प्राप्त होता है हाथ आदि द्वारा ग्रहण होता है और चक्षु. आदि इन्द्रियों द्वारा उसका देखना आदि होता है परन्तु परमाणु तो ऐसा होता नहीं है इसलिये अतिसूक्ष्म और अवयवरहित होने के कारण ही वह अग्राह्य होता है, 'खेत्त परमाणू णं भंते! कविहे पत्ते' हे भदन्त ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? इस गौतम के प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं-'गोषमा! च उबिहे पन्नत्ते' ४१२९४थी तन मने अपामां आवे छे. 'अडज्जे' अ१य१ सहित पायी કાષ્ઠ-લાકડા વિગેરે પદાર્થો જ અગ્નિથી ખાળી શકાય છે. અવયવ વગરના डापाथी ५२मा जी शत नथी. 'अगेज्झे' २४ ४२९४थी त भयाह्य કહેલ છે. હાથ અગર ચક્ષ વિગેરે ઇન્દ્રિય તેને ગ્રહણ કરી શકતા નથી. તેમ તેને જોઈ શકતા નથી તેથી તેને અગ્ર હ્ય કહેલ છે. અવયવ સાથે પદાર્થના જ કે જે સ્થૂલ ભાવ પામે છે. તેનું હાથ વિગેરેથી ગ્રહણ કરાય છે. અને નેત્રાદિ ઈન્દ્રિયો વડે તેને જેવા વિગેરે થઈ શકે છે પરંતુ પરમાણુ તે એવું હોતું નથી તેથી અત્યંત સૂક્ષ્મ અને અવયવ વગરના હેવાને छार ०४ ते भाव डाय छे. 'खेत्तपरमाणू णं भंते! कइविहे पणत्ते ભગવન ક્ષેત્રપરમાણુ કેટલા પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभु ४ थे-'गोयमा चउविहे पन्नत्ते' ३ गौतम क्षेत्र ५२मा यार શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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