SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 826
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८१२ भगवतीस्त्रे 'जाव' इत्यादि, 'जाव सिय कालगा य नीलगा य लोहियगा य हालिदगा य सुकिल्लए य' यावत् स्यात् कालाश्च नीलाच लोहिताश्च हारिद्राश्च शुक्लश्चेति एकत्रिशो भगः यावत्पदेन तृतीयमगादारभ्य त्रिशत्तमपर्यन्ता भङ्गाः संग्राह्याः, तथाहि-स्यात् कालश्च नीलश्च लोहितश्च हारिद्राश्च शुक्लश्चति तृतीयः ३, स्यात् कालच नीलश्च लोहितश्च हाग्द्रिाश्च शुक्लाश्चेति चतुर्थः ४, स्यात् कालश्च नीलश्च लोहिताश्च हारिद्रश्च शुक्लश्चेति पञ्चमः ५, स्यात् कालश्च नीलश्च लोहि और अनेकत्व को ले करके ३१ भंग कहना चाहिए यावत्-'सिय कालगा य, नीलगा य, लोहियगा य, हालिद्दगा य सुकिल्लए य' उसके अनेक प्रदेश कृष्ण वर्णवाले, अनेक प्रदेश नीले वर्णवाले, अनेक प्रदेश लाल वर्णवाले, अनेक प्रदेश पीले वर्णवाले और एक प्रदेश शुक्ल वर्णवाला हो सकता है यह ३१ वां भंग है यहां यावत्पद से तृतीय भंग से लेकर ३० वें भंग तक के भंग ग्रहण किए गए हैं वे इस प्रकार से हैं-'स्यात् कालश्च, नीलश्च, लोहितश्च, हारिद्राश्व शुक्लश्च ३' यह तीसरा भंग है इसके अनुसार उसका एक प्रदेश कृष्ण वर्ण का एक प्रदेश नीले वर्ण का, एक प्रदेश लोहित वर्ण का, अनेक प्रदेश पीले वर्ण के और एक प्रदेश शुक्ल वर्ण का हो सकता है ३ 'स्यात् कालश्च, नीलश्च, लोहितश्व, हारिद्राश्च, शुक्लाश्च४' यह चतुर्थ भंग है इसके अनुसार उसका एक प्रदेश कृष्ण वर्णवाला, एक प्रदेश नीले वर्णवाला, एक प्रदेश लोहित वर्णवाला, अनेक प्रदेश पीले वर्णवाले और अनेक प्रदेश शुक्ल वर्णवाले हो सकते हैं ४ अथवा-'स्यात् कालश्च, नीलश्च, लोहि. ताश्च, हारिद्रश्च, शुक्लश्च' यह पांचवां भंग है इसके अनुसार इसका मेत्रीस मो याय छे. तेभ सभ. यावत् 'सिय कालगा य, नीलगा य लोहियगा य, हालिहगा य सुकिल्लए य' तनामनेर प्रश। . पाणा અનેક પ્રદેશ નીલ વર્ણવાળા અનેક પ્રદેશ લાલ વર્ણવાળા અનેક પ્રદેશ પીળા વર્ણવાળા અને એક પ્રદેશ સફેદ વર્ણવાળો હોય છે. આ ૩૧ એક. ત્રીસમો ભંગ થાય છે. અહિંયાં યાત્ પદથી ત્રીજા ભંગથી લઈ ૩૦ ત્રીસમાં ला सधीन। सो अय ४२१॥ छ. १ मा प्रभारी छ.-'स्यात् कालाश्च नीलश्च लोहितश्च हारिद्राश्च शुक्लश्च३' तन मे प्रदेश वाणी, એક પ્રદેશ નીલ વર્ણવાળે, એક પ્રદેશ લાલ વર્ણવાળે, અનેક પ્રદેશે પીળા વર્ણવાળા અને કેઈ એક પ્રદેશ સફેદ વર્ણવાળો હોય છે. આ ત્રીજો ભંગ है. 3 या 'स्यात् कालश्च, नीलच, लोहितव, हारिद्राश्च, शुक्लाश्च४' એક પ્રદેશમાં તે કાળા વર્ણવાળે એક પ્રદેશમાં નીલ વર્ણવાળે એક પ્રદેશમાં લાલ વણવાળે અનેક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળે અને અનેક પ્રદેશોમાં સફેદ परवाना डाय. मा याथे। म छे. ४ ५२१'स्यात् कालश्च नीलश्च શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy