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________________ ७६८ भगवतीस्त्रे रेण सप्तपदेशिकपकरणेऽपि स्पर्शभङ्गा ज्ञातव्या इति, तथाहि-यदि स्पर्शद्वयवान स्यात् सप्तमदेशिकः स्कन्धस्तदा चतुष्पदेशिकस्कन्धवदेव अत्रापि चत्वारो भङ्गाः, 'सिय सीए य निद्ध य १, सिय सीए य लुक्खे य २, सिय उसिणे य निद्धे य ३, सिय उसिणे य लुक्खे य ४,' स्यात् शीतच स्निग्धश्चेति प्रथमः १, स्यात् शीतश्च रूक्षश्चेति द्वितीय: २, स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्चेति तृतीयः ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्चेति चतुर्थः ४, एवं चत्वारो भङ्गाः द्विस्पर्शविषये सप्तपदेशिक स्कन्धस्य भवन्तीति । यदि त्रिस्पर्शः सप्तमदेशिकः स्कन्धस्तदा 'सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुबखे य १, सव्वे सीए देसे निद्धे देसा लुक्खा २, सन्चे सीए देसा जानना चाहिये, जैसे यदि वह सप्तप्रदेशिक स्कन्ध दो स्पर्शों वाला होता है तो वह चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध की तरह ही इन चार भंगों वाला होता है 'सिय सीए य निद्धे य १, सिय सीए य लुक्खे य २, सिय उसिणे य, निद्धे य ३, सिय सिणे य लुक्खे य ४' इनका तात्पर्य ऐसा है कि वह सप्तप्रदेशिक स्कन्ध कदाचित् शीत स्पर्शवाला और स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है १ कदाचित् वह शीत स्पर्शवाला और रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है २, कदाचित् वह उष्ण स्पर्शवाला और स्निग्ध स्पर्शवाला हो सकता है ३, कदाचित् वह उष्ण स्पर्शवाला और रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है ४ इस प्रकार के ये ४ भंग विस्पर्श के विषय में सप्तप्रदेशिक स्कन्ध के होते हैं। यदि वह सप्तप्रदेशिक स्कन्ध तीन 'स्पों वाला होता है-तो इस सामान्य कथन में वह-'सव्वे सीए देसे निद्धे, देसे लुक्खे य १, सव्वे વાળ સ્કંધ જે બે સ્પર્શવાળી હોય તે તે ચાર પ્રદેશી સ્કંધ પ્રમાણે આ नीमताव प्रभारी यारी पो थाय छ, 'सिय सियए निद्ध य१ કોઈ વાર તે ઠંડા સ્પર્શવાળો હોય છે. અને કઈવાર સ્નિગ્ધ-ચિકણું સ્પેશવાળા य छ.१ 'सिय सिए य लुक्खे यर' अवारते । २५शवाजी हाय छे. सन अवा२ ३क्ष २५शवाणी पर डा शछे. 'सिय उसिणे य निद्धे य३' पाते Gel १५शवाजो मन निघ-ig २५ वा हाय छ 3 'सिय उसिणे य लुम्खे य४' १२ ते ४ २५शाणो मने ३६ २५ डाय छे ४ ॥ रीते આ ચાર અંગે બે સ્પર્શના સંબંધમાં સાત પ્રદેશવાળા સ્કંધના થાય છે. જે તે સાત પ્રદેશવાળ કંધ ત્રણ સ્પર્શેવાળે હેય તે આ સામાન્ય यनमा प्रमाणे तय १५ो छ । छे. 'सव्वे सीए देसे निदे, देसे लुक्खे १ त साशमा ! २५शपाले डाय छ. ये देशमा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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