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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ ४०६ ०१ सचेतनामचेतनानामनेकस्वभावत्वम् ६३ इत्यर्थः 'कइफासे' कतिस्पर्शः लघुगुरुकादिषु अष्टविधेषु स्पर्शेषु मध्ये कतमः स्पर्शो विद्यते 'पन्नत्ते' प्रज्ञप्तः - कथितः, भगवानाह - 'गोयमा !' इत्यादि । 'गोयमा ! ' ' एत्थ णं दो नया भवंति ' अत्र खलु द्वौ नयौ भवतः अत्र प्रकृतविषये द्रवगुडस्य वर्णरसस्पर्शादिमत्वे द्वौ नयौ भवतः नीयते माप्यते विवक्षितार्थोऽनेनेति नयः प्रमाणैकदेशः सत्सु बहुषु पदार्थेषु मध्यात् एकार्थावगाही नय इति फलितः, प्रकृते द्वौ नयौ भवतः, कौ तौ द्वौ नयौ तत्राह - 'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा ' तद्यथा 'निच्छयनए य वावहारियनए य' नैश्चयिकनयश्च व्यावहाहै । तथा च द्रवता (गीला) गुणवाला जो गुड है वह फाणितगुड है । वह फाणितगुड कितने वर्णवाला है ? 'कहगंधे' कितने गन्धवाला है ? तथा ' कइरसे' कितने रसवाला है । 'कहफासे' कितने उसमें स्पर्श है ? इसका तात्पर्य ऐसा है कि फाणितगुड में पांच रसों में से कितने रस हैं। पांच वर्णों में से कितने वर्ण हैं यावत् आठ स्पर्शो में से कितने उसमें स्पर्श हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोमा !' हे गौतम 'एत्थ णं दो नया भवति' इस विषय का विचार करने के लिये यहां दो नय होते हैं विवक्षित अर्थ जिसके द्वारा अच्छी प्रकार से समझ लिया जाता है उसका नाम नय है । यह नय प्रमाण का एक देश कहा गया है। अनेक अर्थों में से एक अर्थ में अवगाह करनेवाली जो विचारधारा है । वही नय है प्रकृत में दो नय बतलाये गये हैं और ये दो नय नैश्चायिक और व्यावहारिक नय हैं। यही बात 'निच्छनए ' इत्यादि सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की गई है नैयत्य अर्थ
-ઝરવું એ પ્રમાણે છે. તથા દ્રવતા ઝરવાના ગુણવાળા જે ગાળ છે, તે ફ્રાણિત गोण उवाय छे. या शशित गोज डेंटला वर्षावाणी छे ? " कइगंधे” डेटला गंध
वाणी छे ? " कइरसे" टला रसवाणी हे ? " कइफासे" तेमां डेटला स्पर्श છે? પૂછવાના હેતુ એ છે કે-ફાણિત ગેાળમાં પાંચ રસેામાંથી કેટલા રસ છે? પાંચ વર્ષોંમાથી કેટલા વધુ છે ? એ ગંધમાંથી કેટલા ગધ છે ? તથા આઠ સ્પર્ધામાંથી કેટલા સ્પશ છે?
या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु हे छे ! - " गोयमा !" हे गौतम "एत्थ णं दो नया भवंति " मा मामतना विचार उरवामां अडियां मे नयने। आश्रम ४२वामां આવે છે. વિવક્ષિત અ જેનાથી સારી રીતે સમજવામાં આવે તેનું નામ નય છે. આ નય પ્રમાણેના એક દેશ કહેવાય છે. અનેક પદાર્થમાંથી એક અથમાં અવગાહ કરવાવાળી જે વિચાર ધારા છે, તેજ નય છે. આ ચાલુ પ્રકરણમાં नैश्चयिष्ठ भने व्यवहार नय मे रीते मे नय उद्या हे, मेवात "निच्छाइय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩