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भगवतीसूत्रे भावः। 'फासा जहा चउप्पएसियस्स' षट्भदेशिकस्कन्धस्य स्पर्शास्तथैव वक्तव्याः यथा चतुष्पदेशिकस्कन्धस्य स्पर्शाः कथितास्तथाहि-यदि द्विस्पर्शः षट्भदेशिकस्कन्धस्तदा स्यात् शीश्च स्निग्धश्च १, स्यात् शीतश्व रूक्षश्च २, स्यात् उष्णव स्निग्धश्च ३, स्यात् उष्णश्च रूक्षश्चेति चतुर्थः ४, एवं वतारो भङ्गाः द्विस्पर्शत्वे । यदि त्रिस्पर्शस्तदा सर्व शीतः देशः स्निग्य देशो रूक्ष इति प्रथमो कुल १८६ होते हैं, 'फासा जहा च उप्पएसियरस' जिस पद्धति से चतुः प्रदेशी स्कन्ध के स्पशों के विषय में कहा जा चुका है उसी पद्धति से यहां षट् प्रदेशिक स्कन्ध के स्पर्शों को भी कह लेना चाहिए, तथाहियदि वह षट् प्रदेशिक स्कन्ध दो स्पर्शों वाला होता है तो यहां ४ भंग होते हैं-'स्यात् शीतश्च स्निग्धश्च १ वह कदाचित् शीत और स्निग्ध स्पर्श वाला हो सकता है १ अथवा- स्यात् शीतश्च रूक्षश्च' वह शीत
और रूक्ष स्पर्श वाला भी हो सकता है २ अथवा-'स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च' वह उष्ण और स्निग्ध स्पर्शवाला भी हो सकता है ३ अथवा'स्यात् उष्णश्च रूक्षश्च' वह उष्णस्पर्श वाला और रूक्ष स्पर्श याला भी हो सकता है ४' ये ४ भंग विस्पर्श सम्बन्धी हैं।
यदि वह त्रिस्पर्श वाला होता है तो यहां १६ भंग होते हैं-'सधे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' सर्वः शीत: देशः स्निग्धः देशो रूक्षः १' वह अपने सर्वाश में शीत हो सकता है, एक સંગી એંસી અંગે ચાર સંયોગી ૫૫ પંચાવન ભંગ અને પાંચ સગી છ ભંગ આ રીતે કુલ ૧૮૬ એકસો છયાસી ભંગ થાય છે.
__'फासा जहा चउप्पएसियन' या२ प्रदेश २४ धौना २५शन सम'. ધમાં જે પ્રમાણે કથન પહેલાં કર્યું છે. તેજ પદ્ધતિથી આ છ પ્રદેશવાળા સ્કંધના પશે સંબંધી મંગે સમજવા. જેમકે જે તે છ પ્રદેશવાળો ધ यस्पशपाया जाय तो ना ४ । थाय छ 'स्यात् शीतश्व स्निग्धश्च १
पार ते 1 मने स्नि २५ पाणी डाय छे. १ मथ। 'स्यात् शीतश्च रूक्षश्च २' १२ ते ४. अने ३२९५शाणे! ७५ छ. २ मा 'स्यात् उष्णश्च स्निग्धश्च ३' वा२ ५५शवाणी मने सिन५-या-२५२ वाणे डाय छे. 3 अथवा 'स्यात् उष्णश्च रूक्षश्च ४' ७२ ते १५० વાળો અને રૂક્ષસ્પર્શવાળ હોય છે. ૪ આ ચાર ભંગ બે સ્પર્શને લઈને કહ્યા છે. જે તે છ પ્રદેશ રકધ ત્રણ સ્પર્શવાળ હોય તો તેના સોળ
मी याय छे. २ माशते थाय छ-'सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे' 'सर्वः शीतः देशः स्निग्धः देशो रूक्षः१' ते पाताना सर्वा शमा १५ जे. डाय छे.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩