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________________ ५६ भगवती सूत्रे 9 ऋजु विकुर्विष्यामीति वक्रं विकुर्वते विलक्षणं रूपादिकं कर्तुमिच्छति तदा कुटि लमेव रूपादिक कुर्वते इत्यर्थः 'व'क' विव्विस्तामीति उज्जुयं चिउव्वई' 'व'क' वक्रं कुटिलमित्यर्थः विकुविष्यामीति ऋजु विकुर्वते यदिच्छति ततो विपरीतमेव विकुर्वते इत्यर्थः 'जं जहा इच्छइ णो तं तदा विउच्त्र' यद् यथा इच्छति नो तत्तथा त्रिकुर्वते इच्छानुकल्ये विकुर्वणसामर्थ्याभाव इतिभावः । ' से कह मेयं भंते । एवं तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? हे भदन्त । एतत् एकजातीयश्वेऽपि असुरकुमारदेवयोवैलक्षण्यम् तत् एवमुभयोः समानत्वेऽपि कथं वैलक्षण्यम् ? इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम! 'असुरकुमारा से उस वस्तुको कर लेता है। 'एंगे असुरकुमारे देवे उज्जयं विउविस्सामीति वकं विब्व' तथा दूसरा जो असुरकुमार देव है। 'मैं विलक्षण रूपादिकों की विक्रिया करू" ऐसा जब सोचता है तब वह वैसा न करके कुटिल ही रूपादिकों की विक्रिया करता है। 'वंकं विव्विस्सामीति उज्जयं विजच्वह' और जब 'मैं वक्र कुटिल रूपादिकों की बिकु वणी करू" ऐसा सोचता है तब वह ऋजुक विकुर्वणा करता है इस प्रकार वह जैसी विकुर्वणा करना चाहता है वह वैसी विकुर्वणा न करके उससे विपरीत ही विकुर्वणा करते हैं अतः 'जं जहा इच्छ णो तं तहा विवह' जैसी वह चाहता है वैसी वह विक्रिया नहीं कर पाता है । इस प्रकार से उसमें इच्छानुकूल विकुर्वणा करने के सामर्थ्य का अभाव है । 'से कहमेयं भंते ! एवं' सो हे भदन्त ! एक जातीयता होने पर भी दोनों असुरकुमार देवों में इस बैलक्षण्य होने का क्या कारण है । उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! ' हे गौतम ! તે “ ુ. વિલક્ષણ રૂપાદિની વિક્રિયા કરૂ” એ પ્રમાણે જ્યારે વિચાર કરે છે, त्यारै ते ते प्रमाथे न भरतां कुटिल ३याहिनी विडिया अरे थे, “वंकं विरामी ति उज्जुयं विउव्वइ" भने न्यारे "हु बहु-टिस ३याहिनी विडिया કરૂ” એ પ્રમાણે વિચારે છે, ત્યારે તે ઋજુ-સરળ વિષુવ ણા કરે છે. એ રીતે તે જેવી વિકુવરણા કરવા ઈચ્છે છે, તેવી વિકુણા ન કરતાં તેનાથી જુદા zu faşa'yı sad. Dul “El Eg" of a agı fazsag” A Dal વિક્રિયા કરવા ઈચ્છે છે, તેવી વિક્રિયા તે કરી શકતા નથી, તેવી રીતે ઈચ્છા प्रमाणे विठुला ४२वानी शक्तिने। तेनासां अभाव छे. " से कहमेयं भंते ! एवं " હૈ ભગવત્ એક જાતીપણું હાવા છતાં પણ અન્ને અસુરકુમાર દેવામાં આ પ્રમાણે જુદાપણું હવામાં શું કારણ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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