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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० ३०५ सू०३ पञ्चप्रदेशिकस्कन्धनिरूपणम् र हालिदए य ५, सियकालगा य नीलए य हालिदगा य ६, सिय कालगा य नीलगाय हालिद्दए य ७' स्यात् कालश्च लोहितश्च हारिद्रश्च १, स्यात् कालश्च लोहितश्च हारिद्राश्च २, स्यात् कालश्च नीलकाश्च हारिद्रश्च ३, स्यात् कालाच नीलकाधे हारिद्राश्च ४, स्यात् कालाश्च नीलकश्च हारिद्रश्च ५, स्यात् कालाश्च नीलश्च हारिद्राश्च ६, स्यात् कालाश्च नीलकाश्च हारिद्रश्चेति सप्तमः । 'काललोहियसुकिल्लेमु' काललोहितशुक्लेष्वपि सप्तमगा भवन्ति तथाहि-'सिय कालए य लोहियए य वर्णयोला हो सकता है 'सिय कालए नीलगा हालिहगा य ४' यह चौथा भंग है इसके अनुसार वह अपने किसी एक प्रदेश में काले वर्णवाला अनेक प्रदेशों में नीलेवर्णवाला और अनेक प्रदेशों में पीलेवर्णवाला हो सकता है । 'सिय कालगाय नीलए य हालिहए य ५' यह पांचवां भंगहै इसके अनुसार उसके अनेप्रदेश कृष्णवर्ण के हो सकते हैं एकप्रदेश उसका नीलेवर्ण का हो सकता है और एक प्रदेश उसका पीले वर्ण का हो सकता है 'सिय कालगा य नीलए य हालिहगा य' यह छठा भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्णवर्णवाले एक प्रदेश नीलेवर्णवाला और अनेक प्रदेश पीछेवर्णवाले हो सकते हैं 'सिय कालगा य नीलगा य हालिहए य' यह सातवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेश कृष्णवाले अनेक प्रदेश नीलवर्णवाले और एकप्रदेश पीलेवर्णवाला हो सकता है 'काललोहियसुक्किल्लेसु' काल लोहित शुक्ल इन तीन वर्गों के संयोग में भी इसी प्रकार से सात પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળે તથા અનેક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે, मा शत या 1 थाय छे. ४ 'सिय कालगा य नील ए य हालिए य५' तेना भने प्रदेश जा १४ाणे य छे. तनीय अहेश नीस' વાળા હોય છે. તથા એક પ્રદેશ પીળા વર્ણવાળી હોય છે. આ પ્રમાણે આ पाय
हा छ. ५ 'सिय कालगा य नीलए य हालिद्दगा य६' तना અનેક પ્રદેશ કાળા વર્ણવાળા હોય છે. એક પ્રદેશ નીલવર્ણવાળો હોય છે તથા અનેક પ્રદેશે પીળા વર્ણવાળા હોય છે. આ રીતે આ છઠ્ઠો ભંગ છે. 'सिय कालगा य नीलगा य हालिएर य' तनामने प्रदेश पाहाय છે. અનેક પ્રદેશ નીલવર્ણવાળા હોય છે. અને એક પ્રદેશ પીળાવણુંવાળે डाय छे. मा सातमा छ. ७' 'काललोहियसुकिल्लेसु' गोषण લાલવણ અને ધોળા વર્ણના વેગથી પણ સાત ભાગો થાય છે. જે આ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩