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________________ ૪૮ भगवतीस्ने लोहियहालिहेसु' एवं काललोहितहारिद्रेषु सप्तभङ्गा भवन्ति तथाहि-'सिय कालए लोहियए हालिद्दए १, सिय कालए लोहियए हालिद्दगा २, सिय कालए नीलगा हालिद्दए य३, सिय कालए नीलगा हालिहगा य४, सिय कालगा य नीलए और अनेक प्रदेश शुक्लवर्णवाले हो सकते हैं 'सिय कालगा घ, नीलगा य, सुकिल्लए य' यह सातवां भंग है इसके अनुसार उसके अनेक प्रदेशकाले हो सकते हैं अनेक प्रदेश नीले हो सकते हैं और एकप्रदेश उसका शुक्ल हो सकता है 'कालगलोहियहालिद्देसु' के अनुसार कृष्ण लोहित पीत इनके संयोग में भी सात भंग होते हैं-जो इस प्रकार से हैं-'सिय कालए लोहियए, हालिद्दए य' ऐसा यह प्रथम भंग है इसके अनुसार वह अपने किसी एक प्रदेश में कृष्णवर्णवाला हो सकता है किसी एक प्रदेश में लालवर्णवाला हो सकता है और किसी एक प्रदेश में पीलेवर्णवाला हो सकता है 'सिय कालए लोहियए हालि६गा य २' यह द्वितीय भंग है इसके अनुसार वह अपने किसी एकप्रदेश में कृष्णवर्णवाला किसी एक प्रदेश में लोहित वर्णवाला और अनेक प्रदेशों में पीतवर्णवाला हो सकता है 'सिय कालए नीलगा हालिइए य' यह तृतीय भंग है इसके अनुसार वह अपने एकप्रदेश में कृष्णवर्णवाला अनेक प्रदेशों में नीलेवर्णवाला और एक प्रदेश में पीले વર્ણવાળો હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળો હોય છે. તથા અનેક प्रदेशमा पापणी डाय छे. या प्रमाणे छ? Anाय छे. १ 'सिय कालगा य, नीलगा य, सुकिल्लए य ७ तेन भने प्रश। जाव वाणा હોય છે. અનેક પ્રદેશ નીલવર્ણવાળા હોય તથા તેને એક પ્રદેશ ધેળાવણુંવાળો अय छ. मेरी मा सातमी ' थाय छ. ७' 'कालगलोहियहालिहेसु' કાળા લાલ અને પીળા વર્ણના વેગથી પણ સાત અંગે બને છે. જે આ शत "सिय कालए लोहियए हालिदए य १' पोताना 30 ४ प्रशwi કાળા વસુંવાળો હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં લાલવર્ણવાળો હોય છે. તથા 3 में प्रशमा प वा डाय छे. म। प ल . १ 'सिय कालए लोहियए हालिद्दगा य २' त पाताना ७ मे प्रदेशमा વર્ણવાળો હોય છે. કોઈ એક પ્રદેશમાં લાલવણ વાળો હોય છે. તથા અનેક પ્રદેશમાં પીળાવવાળો હોય છે. આ બીજો ભંગ २ 'सिय कालए नीलगा य हालिहए य३' ते पाताना में प्रदेशमimg વાળો હોય છે. અનેક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળો હોય છે તે તથા એક પ્રદેશમાં पीना पाणी हाय छे. मात्री 9. 3 'सिय कालए नीलगा हालि. हमा य ४' a dial 18 से प्रदेशमा जावाजी साय. भने। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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