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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०९ सू०१ करणस्वरूपनिरूपणम् ४५५ 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे सरीरकरणे पन्नत्ते' पञ्चविधं पश्चप्रकारकं शरीरकरणं प्रज्ञप्तम्-कथितमित्युत्तरम् 'तं जहा' तद्यथा-ओरालियसरीरकरणे' औदारिकशरीरकरणम् , 'जाव कम्मगसरीरकरणे' यावत् कार्मणशरीरकरणम् अत्र यावत्पदेन आहारकक्रियतैजस शरीराणाम् ग्रहणं भवति तथा चौदारिका-हारक-चैक्रिय-तैनस-कार्मणभेदात् पञ्चविध शरीरकरणं भवतीति भावः । ‘एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जइ सरीराणि' एवं यावद्वैमानिकानां यस्य यानि शरीराणि नारकादारभ्य वैमानिकान्तजीवानाम् शरीरकरणं भवतीति ज्ञेयम् परन्तु यस्य जीवस्य यादृशं शरीरं भवति तस्य जीवस्य तादृशानि एव शरीरकरशरीरकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने कहा है कि-'गोयमा' हे गौतम ! पंचविहे सरीरकरणे पण्णत्ते' शरीरकरण पांच प्रकार का कहा गया है जैसे-'ओरालिय' औदारिक शरीर करण यावत् कार्मणशरीरकरण यहां यावत्पद से आहारक, वैक्रिय और तैजस शरीरों का ग्रहण हुआ है तथा च औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस एवं कार्मणशरीर के भेद से शरीरकरण पांच प्रकार का होता है 'एवं जाव वेमाणियाणं०' नारक से लेकर वैमानिक तक के समस्त संसारी जीवों को जिस जीव को जो शरीर होता है उस जीव को वही करण होता है सब जीव को सब करण नहीं होते हैं, तात्पर्य कहने का यह है कि नारक और देवों को तैजस कार्मण और वैक्रिय शरीर होते हैं इसलिये इनके ये तीनों ही शरीरकरण होते हैं । तिर्यञ्च एवं मनुष्यों के तैजस और कार्मणशरीर के साथ औदारिक शरीर होता है इसलिये 'इविहे ण भंते ! सरीरकरणे पण्णत्ते' 3 मापन शरी२ ४२५ मा २॥ ४ामा मावेस छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -'गोयमा ! उ गौतम पंचविहे सरीरकरणे पण्णत्ते' श६२२४२९४ पाय २नु अवामा भावेस छ. रेभ-'ओरालिय०' मोहा२िशरी२ ४२४१, मा।२४ शरीर કરણ વૈક્રિયશરીરકરણ૩, તેજસશરીરકરણ અને કાર્માણશરીરકરણ ૫ એ રીતે શરીરકરણ પાંચ પ્રકારનું કહેવામાં આવેલ છે. ___एवं जाव वेमाणियाणं' ना२४थी भाभीने वैभानि सुधीना मा ४ સંસારી જીવને જે શરીર હોય છે, તે જીવને તેજ કારણ હોય છે. બધા જીવોને બધા કરણ દેતા નથી. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–નારક અને દેવોને તૈજસ, કામણ અને વૈકિય શરીર હોય છે. તેથી તેઓને આ ત્રણે શરીર કરણે હોય છે. તિર્યંચ અને મનુષ્યને તૈજસ અને કાર્મણ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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