SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५३ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०९ सु०१ करणस्वरूपनिरूपणम् कुठारादि अथवा द्रव्यस्य घटादेः करणमिति द्रव्यकरणम्, यद्वा द्रव्येण - शलाकादिना करणमिति द्रव्यकरणम्, अथवा द्रव्ये पात्रादौ करणमिति । 'खेत्तं करणं' क्षेत्रकरणम् क्षेत्रमेव करणमिति क्षेत्रकरणम्, यद्वा क्षेत्रस्य - शालिक्षेत्रादेः करणमिति क्षेत्रकरणम् अथवा क्षेत्रेण करणं स्वाध्यायादेरिति क्षेत्रकरणम् । 'काळकरणं' काल एवं करणं कालस्य वा - अवसरादेः करणं कालेन वा काले वा करणमिति कालकरणम् | 'भवकरणे' भवकरणं भवो - नारकादिः स एव करणमिति भक्करणम् अथवा भवस्य - नारकादेः करणम् अथवा भवेन - नारकादिना करणं यद्वा भवे - नारकादौ करणमिति भावकरणम् | 'भावकरणे' भावकरणम् भाव एव करणं द्रव्य घटादिक का जो करण आरम्भ किया है वह द्रव्यकरण है अथवा शलाका आदि से करना इसका नाम द्रव्यकरण है अथवा 'द्रव्ये करणम्' पात्रादिरूप द्रव्य में करण का नाम द्रव्यकरण हैं। 'खेत्ते करणे' क्षेत्र करणे क्षेत्ररूप करण का नाम क्षेत्रकरण है अथवा क्षेत्रका शालि आदि के खेत का करना क्षेत्र करण है अथवा क्षेत्र के द्वारा स्वाध्याय आदि का करना वह क्षेत्र करण है । 'कालकरणे ३' कालरूप करण का नाम कालकरण हैं अथवा अवसर आदिरूप काल का समय का करना कालकरण है अथवा काल के द्वारा या काल में करना इसका नाम कालकरण है । 'भवकरणे ४' नारक आदिरूप पर्याय का नाम भव है इस भव का ही नाम करण है अथवा नारकादि भव का करना या नारक आदि भव के द्वारा करना, या नारक आदि भव में करना इसका नाम भवकरण हैं । K કરણ છે. જેમ કે કુાર્ડિ વિગેરે અથવા દ્રવ્ય-ધડા વિગેરેનું કરશુ-આર’ભ ક્રિયા છે. તે દ્રવ્યકરણુ છે. અથવા સળી વિગેરેનું કરવું તેનુ' નામ દ્રવ્યકરણુ ४. अथवा 'द्रव्ये करणम्' पात्र विगेरे द्रव्यभां ४२बुं तेनु' नाम द्रव्यश्णु छे. १ 'खेत्ते करणे' क्षेत्र-क्षेत्र३५ ४२ - क्षेत्र३५ ४२ नाम क्षेत्र४२ छे. અથવા શાલિ વિગેરેથી ક્ષેત્રનુ કરવુ' તેનું નામક્ષેત્રકરણ છે. અથવા ક્ષેત્ર દ્વારા સ્વાધ્યાય વિગેરેનું કરવું તેનુ' નામ ક્ષેત્રકરણ છે.ર 'कालकरणे' डास३५ २णुनु नाम हाल १२ए छे. अथवा अक्सर विगेरे રૂપ કાલ-સમયનું” કરવુ ́ તેનુ” નામ કાલકરણ છે. અથવા કાલ દ્વારા કે કાળમાં કરવુ તેનુ નામ કાલ કરણ છે.૩ 'भत्रकरणे' ना२४ विगेरे पर्यायनु नाम लव हे या लवनुं नाभ કરણ છે. અથવા નારક વિગેરે ભવાતું કરવુ' અથવા નારકાદિ ભવ દ્વારા કરવુ अथवा नारडाडि अवमां २ तेतु नाम लव४२ छे.४ 'भावकरणे' भावनु શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy