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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०४ सू०१ नारकादीनां महावेदनावत्वनि०
'गोयमा' हे गौतम! 'णो इणडे समङ्के' नायमर्थः समर्थः, अयं पञ्चदशभङ्गात्मकः पक्षो नारकविषये न घटते नारकाणामात्रत्रक्रिया वेदनानां बहुत्वात् निर्जराया वाल्पत्वादिति पञ्चदशो भङ्गः १५ । 'सिय भंते नेरइया' स्युः भदन्त ! नैरयिकाः 'अप्पासवा अपकिरिया अपपवेयणा अप्पनिज्जरा' अल्पास्रवा अल्पक्रिया अल्पवेदना अल्पनिर्जराच किम ? इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'णो इणर्डे समट्टे' नायमर्थः समर्थः अयं षोडशभङ्गात्मकः पक्षो नारकविषये न घटते तेषामात्रत्रक्रिया वेदमानां बहुत्वादिति षोडशो भङ्गः १६ । 'एए सोलसभंगा' एते पूर्वोक्ताः षोडशभङ्गा नारकविषये भवन्ति । अथ अंगुल्यु परिसंख्या कृते एवं उपर्युक्तभङ्गेषु षोडशत्त्रसिद्धे, षोडशभङ्गा इति कथनं निरर्थकमिति चेन्न भङ्ग न्यूनाधिक संख्याव्यवच्छेदार्थ भंग है वह है गौतम ! नारकों में इस कारण से नहीं घटित होता कि नारकों में आस्रव किया और वेदना इन सब की अधिकता रहती है और निर्जरा की अल्पता रहती है ।
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'सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा' यह जो १६ वां भंग है वह हे गौतम! नारकों में नहीं घटता है कारण की नारकों में आस्रव क्रिया और वेदना की बहुत अधिकता होती है। इस प्रकार से ये १६ भंग हैं । यहाँ ऐसी शंका हो सकती है कि 'एए सोलसभंगा' इस प्रकार से कहने की क्या आवश्यक्ता सूत्रकार को लगी ? क्योंकि गिनने से सोलह की संख्या साध्य हो जाती है ? सो ऐसी शंका करना ठीक नहीं है कारण कि 'एए सोलसभंगा' ऐसा जो कहा गया है वह भंगों की न्यूनाधिक संख्या की निवृत्ति के लिये कहा गया है या श्रोतृजनों को सुख से કારણ કે—નારકામાં આસ્રવ, ક્રિયા, અને વેદના એ ત્રણેનું અધિકપણ હાય છે. અને નિરાનું અલ્પપણુ હાય છે.
'सिय भंते ! नेरइया अप्पासवा अप्पकिरिया अप्पवेयणा अप्पनिज्जरा' આ પ્રમાણેના જે ૧૬ સાળના ભાગ છે તે પણ હે ગૌતમ નારકામાં ઘટતા નથી. કારણ કે નારકામાં આસવ, ક્રિયા અને વેદનાનુ... અધિકપણુ હાય છે.
આ રીતે ઉપરોક્ત આ સાળ લગે છે.
अडियां भेवी शडा थह श छे - 'एए सोलसभंगा' या प्रभालु કહેવાની સૂત્રકારને શી જરૂર હતી? કેમ કે ગણવાથી સેાળની સખ્યા ચાક્કસ જણાઇ આવે છે. તેા પછી તેમ કહેવાનું શું કારણ छे? या अभाोनी शा ४२वी ही नथी. अणु में 'एए सोलसभंगा' भेषु' જે કહેવામાં આવ્યું છે, તે ભંગાની આછાવત્તી સંખ્યાના નિવારણ માટે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩