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भगवती सूत्रे
शरीराणि
वनस्पतिकायिकानां जीवानाम् 'जावइया सरीरा' यावत्कानि 'से एगे सुमवायुपरी रे' तदेकं सूक्ष्मत्रायुशरीरं भवति 'असंखे जाणं सुहुमवाउसरीराणं' असंख्येयानां सूक्ष्मवायुशरीराणां वायुरेव शरीरं येषां ते वायुशरीराः सूक्ष्माश्वते वायुशरीराचेति सूक्ष्मवायुशरीराः तेषां सूक्ष्मवायुशरीराणाम् असंख्येयानां सूक्ष्म कायिकानाम् 'जावइया सरीरा' यावत्कानि शरीराणि 'से एगे मुहमे तेउसरी रे' तदेकं सूक्ष्मं तेजः शरीरम् ' असंखेज्जाणं सुहुमते उकायसरीराणं' असंख्येयानां सूक्ष्मतेजस्कायशरीराणाम् 'जावइया सरीरा' यावत्कानि शरीराणि 'से एगे मुहमे आउसरीरे' तदेक सूक्ष्मापूशरीरम् 'असंखेज्जाणं सुहुम आउकाइयसरीराणं' असंख्येयानां सूक्ष्माष्कायिकशरीराणाम् 'जावइया सरीरा' याव
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सइकाइयाणं' हे गौतम! अनन्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों के जितने शरीर होते हैं । 'से एगे सुहुमवाउसरीरे' उतना शरीर एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव का होता है तात्पर्य कहने का यह है कि अनन्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के असंख्यात शरीर को एकत्रित करने पर जो समुदाय रूप में शरीर का प्रमाण होता है उतना प्रमाण एक सूक्ष्म वायुकायिक जीव के शरीर का होता है ऐसा ही कथन आगे भी जानना चाहिये । 'असंखेज्जाणं सुहुम वाउसरीराणं०' असंख्यात सूक्ष्मवायुकायिकों के जितने शरीर हैं-' से एगे सुहुमे तेउसरीरे०' उतना एक शरीर सूक्ष्म एक तेजस्काधिक जीव का होता है 'असंखेज्जाणं सुद्धम ते काय सरीराणं०' इसी प्रकार से असंख्यात सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों के जितने शरीर होते हैं 'से एगे सुहुमे आउसरीरे०' उतना एक शरीर एक
सुहुमत्रणस्वइकाइयाणं०' ॰' હે ગૌતમ! અનન્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિકાના જેટલા शरीर डाय छे. 'से एगे सुहुमवाउसरीरे' भेटला शरीर मे सूक्ष्म वायुप्रायिोना હાય છે. કહેવાનુ તાપય એ છે કે-અનન્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિકાના શીરાને એકઠા કરવાથી સમુદાય રૂપથી શરીરનું જે પ્રમાણ થાય છે, એટલું જ પ્રમાણ એક સૂક્ષ્મ વાયુકાયિક જીવના શરીરનું થાય છે. એજ પ્રમાણનું स्थन भागण पशु सभल सेवु' 'असं बेज्जाणं सुहुम वाउसरीराणं०' अस ध्यात सूक्ष्म वायुअयिताना भेटला शरीर होय छे, 'से एगे सुहुमे तेउसरीरे० ' तेरो शरीर थोड सूक्ष्म ते लवनु' होय छे, 'असंखेज्जाणं सुहुम देउका यसरीराणं०' ४ रीते असंख्यात सूक्ष्म तेन्स्डायिक भवना भेटला शरीर होय छे, ' से एगे सुडुमे आउसरीरे० ' तेटलु मे शरीर मे अच्छायि छव होय छे. 'असंखेज्जाणं सुदुम आजकाइयसरीराणं०'
સૂક્ષ્મ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩