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________________ ३२८ भगवतीसुत्रे हना द्वयोरपि तुल्या असंख्येयगुणा १०-११ । सूक्ष्पनिगोदस्य पर्याप्तकस्य जघन्याऽवगाहना असंख्येयगुगा १२ । तस्यैव अपर्याप्तकस्य उत्कृष्टाऽवगाहना विशेषाधिका १३ । तस्यैव पर्याप्तकस्य उकृष्टाऽगाहना विशेषाधिका १४ । सूक्ष्मवायुकायिकस्य पर्याप्तकस्य जघन्या अवगाहना असंख्येयगुणा १५। तस्यैव अपर्याप्तकस्य उत्कृष्टाऽगाहना विशेषाधिका १६ । तस्यैव पर्याप्तकस्य उत्कृ. दोण्ह वितुल्ला असंखेज्जगुणा) अपर्याप्त बादरपृथिवीकायिक की जघन्य अवगाहनाले प्रत्येक शरीरवाले अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक की और बादर निगोद की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है और परस्पर में तुल्य है १०-११ (हुमनिओयस्स पजतगस्त जहनिया ओगाहणा असं खेजगुगा) इससे असंख्यातगुणी जघन्य अवगाहना सूक्ष्म निगोंदिया पर्याप्तक की है (तस्लेव अपज्जत्तस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया) इससे विशेषाधिक उत्कृष्ट अवगाहना अपर्याप्त सूक्ष्मनिगोदिया जीव की है १३ (तस्स चेव पज्जत्तगस्त उक्कोसिया ओगाहणा विसे. साहिया) इससे पर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है १४ (सुहुमबाउकाइयस्त पज्जत्तस जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा १५ ) इससे पर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिक जीव की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है (तास चेव अपज्जत्तगस्त उक्को. सिया ओगाहणा विसे साहिया १६ । इसकी अपेक्षा अपर्याप्त सूक्ष्म वायुवि तुल्ला, असंखेज्जगुणा' ५५ति ६२ विजयिनी धन्य मानाथा પ્રત્યેક શરીરવાળા અપર્યાપ્તક બાદર વનસ્પતિકાયિકની અને બાદર નિમેદની જઘન્ય અવગાહના અસંખ્યાત ગણી છે. અને પરસ્પરમાં તુલ્ય છે.૧૦-૧૧ 'सुहमनिओयस पज्जतगस्स जन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' तनाथी मसभ्यात मी धन्य साना सूक्ष्म निगडिया यातनी छ.१२ 'तरसेव अपज्जत्तस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेनाहिया' तनाथी विशेषाधि उत्कृष्ट अशाडना अपर्याप्त सूक्ष्म निगहिया वानी छ.१७ 'तस्स चेव पज्जत्तगस्त उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' तेनाथी पति सूक्ष्म निभाया लन 3gbट न विशेषाधि छे.१४ 'सुहुमवाउकाइयस्स पज्जत्तगस्स जहन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा' तेनाथी पर्याप्त सूक्ष्म वायुयि पनी धन्य समान असभ्यात आणि छ.१५ "तस्स चेव अपज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया' तेनाथी अपर्याप्त सूक्ष्म वायुयिनी धन्य अशाहना विशेषाधि छ,१६ 'तस्स चेव पज्जत्तगस्स उक्कोसिया ओगाहणा શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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