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________________ २८६ - भगवतीसूत्रे गर्मोद्देशकः 'सोचे निरवसेसो भाणियन्त्रो' स एव निरवशेषः-समग्रोऽपि भणि तव्यः-वक्तव्यः ‘एवं' इति एवम्-अनेन प्रकारेण यथा प्रज्ञापनायां गर्भो देशके गर्भसूत्रोपलक्षितोद्देशके सप्तदशपदस्य षष्ठे उद्देशके सूत्रं तथैव इहापि वाच्यम् तन्यूनाधिकत्वपरिहारार्थ माह-'सोचेव' स एव गर्मोद्देशको निरवशेषो भणितव्य इति अनेन यत् सूचितं तदिदम् कति खलु भदन्त ! लेश्याः प्रज्ञप्ताः 'गोयमा ! छ लेस्साओ पन्नत्ताओ तं जहा कण्हलेस्सा जाव मुक्कलेस्सा' गौतम ! षड्लेश्या: प्रज्ञप्ताः तद्यथा कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या अत्र यावत्पदेन नीलकापोततेजः पोतिलेश्याचतुष्टयस्य संग्रहो भाति तथा च कृष्णनीलकापोततेजःपद्मशुक्लादि भेदेन षड्लेश्याः प्रज्ञप्ताः 'मणुस्साणं भंते ! कइलेस्साओ पन्नताओ गोयमा ! है कि हे गौतम ! यहाँ प्रज्ञापना मूत्र के १७ वें पदका छट्ठा गर्भ उद्देश पूराकह लेना चाहिये। इस प्रकार से जैसा प्रज्ञापना सूत्र के गर्भोद्देशक में-गर्भसूत्रोपलक्षित उद्देशक में १७ वें पद के छठे उद्देशे में सूत्र है उसी प्रकार से यहां पर भी वह समग्ररूप से कह लेना चाहिये 'निरव सेसो' पद से यह प्रकट किया गया है कि वह उद्देश पूरा का पूरा यहां कहना चाहिये कमती बढती नहीं इस प्रकार के कथन से जो निष्कर्ष निकला वह इस प्रकार से है-गौतम ने प्रभु से जब ऐसा पूछा हे भदन्त ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ? तो इसके उत्तरमें प्रभु ने कहा हे गौतम ! लेश्याएं छह कही गई हैं। कृष्णलेश्या यावत् शुक्ल लेश्या यावत्पद से यहां नील, कापोत, तेज और पद्म इन चार लेश्याओं का ग्रहण हुआ है। फिर गौतम ने प्रभु से पूछा-'मणुस्साणं भंते !' हे भदन्त ! मनुष्यों को सोचे' गौतम! मा विषयमा प्रज्ञापन। सूत्रन॥ १७ अत्तरमा ५४॥ ५२५२१ છઠ્ઠા ગર્ભાશનું કથન સમજવું અર્થાત્ જે રીતે પ્રજ્ઞાપને સૂત્રના ગદ્દેશમાં -ગર્ભસૂત્રથી ઉપલક્ષિત ઉદ્દેશાના ૧૭ સત્તરમાં પદના છઠા ઉદ્દેશામાં સૂત્ર છે. તે જ રીતે અહિયાં પણ તે સંપૂર્ણરૂપે સમજી લેવું 'निरवसेखो' में पहथी से व्यु छ है. पूरे Y२२ उद्देशानु थन ४२. तथी १५ माछु ४२ नही. ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને જયારે એવું પૂછયું કે હે ભગવન વેશ્યાઓ કેટલા પ્રકારની કહેવામાં આવી છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ કહ્યું કે-હે ગૌતમ! છ પ્રકારની વેશ્યાઓ કહેવામાં આવી છે. તે આ પ્રમાણે છે. કૃષ્ણ લેશ્યા, નીલલેશ્યા ૨, કાપતલેશ્યા, તેજલેશ્યા, પદ્મવેશ્યાપ અને શુકલતેશ્યા, ફરીથી गीतमपाभी प्रभुने मे पूछयु छ ?-'मणुस्साणं भंते ! 3 मापन मनुष्याने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
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