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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०५ वस्तुतत्वनिरूपणम्
२६१ सोमिलेन प्रश्नः कृत इति । 'अक्खए भवं' अक्षयो भवान् क्षीयते इति क्षयो विनाशः न क्षयोऽक्षयोऽविनाशीत्यर्थः, तथा चाविनाशी भवानित्यर्थः अविनाशित्वस्वीकृते 'मरणादिकं कथम् इत्यादि दोषेण पराभविष्यामीत्याशयेन प्रश्नः कृतो भवति 'अव्वए भव' अव्ययो भवान् नव्येति स्वकीयं स्वरूपं परित्यज्य रूपान्तरं प्रामोतीति अव्ययः पर्यायान्तरेण सर्वस्य व्यपदर्शनात् कथमव्यय इति कृत्वा तद्वचनं दृषयिष्यामीति भावेन प्रश्नः । 'अहिए भवं' अवस्थितो भवान् एकरूपेण है कि यदि प्रभु अपने में द्वित्व की स्वीकृति देते हैं तो फिर मैं उनके उस एकस्व पक्ष के साथ इस विश्वपक्ष का तो विरोध है ऐसा उद्भावित करके उनके इस द्वित्व पक्ष का खण्डन करूंगा । 'अक्खए भवं' अथवा आप अक्षय हैं ऐसा यह प्रश्न सोमिल ने प्रभु से इस अभिप्राय से किया है कि यदि आप अक्षय अविनाशी हैं तो फिर मरणा. दिक कैले हो सकते हैं और ये होते तो हैं अतः ऐसा प्रकट कर युक्तियों से पुष्ट कर मैं उन्हें पराभूत करूंगा । 'अबए भवं' अथवा आप अव्यय हैं ऐसा जो यह प्रश्न उनसे किया है वह इस अभिमाय से किया है जो स्वकीय स्वरूप का परित्याग कर रूपान्तर को प्राप्त करता है उसका नाम व्यय है यदि ऐसे व्ययरूप आप नहीं हैं तो पर्यायान्तर से सर्व का व्यय देखा जाता है तो वह अब कैसे देखा जा सकेगा इसलिये आप में अव्ययता कैसे मानी जा सकती है ? इस प्रकार से उद्भावित करके मैं उनके इस अव्यय पक्ष को दूषित करूंगा । 'अवट्टिएभवं' आप अवस्थित બે પાને સ્વીકાર કરે તે પછી તેઓના એકત્વવાદ સાથે આ દ્વિત્વપણાને विराध छ, त मतावान माना । द्वित्वानुमन शश. 'अक्खए भवं' अथ। मा५ मक्षय छ। १ मा प्रश्न सोभित माझ प्रभुन से माटे પૂછેલ છે કે–જે આ૫ અક્ષય અને અવિનાશી છે તે પછી મરણ વિગેરે કેવી રીતે થાય છે? અને મરણાદિ થાય તે જ જેથી એવું યુક્તિથી બતાવીને
तमान ५२१ ५माडीश. 'अव्वए भवं' ५५१ मा५ अव्यय छ। १ ॥ પ્રશ્ન કરવાને સેમિલ બ્રાહ્મણને હેતુ એ છે કે-જે પિતાના સ્વરૂપને ત્યાગ કરીને રૂપાન્તરને પ્રાપ્ત કરે છે, તેનું નામ “વ્યય' છે. જે આપ એવા વ્યય રૂપ ન રહે તે પર્યાયાન્તરથી સવને વ્યય લેવામાં આવે છે. તે તે હવે કેવી રીતે દેખવામાં આવશે. તેથી આપનામાં અવ્યય પણ કેવી રીતે માનવામાં આવી શકે? આ રીતે કહીને તેઓના આ અવ્યય પક્ષને દોષવાળે मतीश. 'अवटिए भवं' म१५ मस्थित छ। १ अर्थात् मे ३२ स्थित ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩