SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२० भगवतीसूत्रे न्तादेशिकेन स्कन्धेन स्यात् स्पृष्टः स्यात् नो स्पृष्टः अनन्तपदेशिकः स्कन्धो वायुना व्याप्यते सूक्ष्मतरत्वात् स्कन्धस्य, वायुकायिकस्तु अनन्तमदेशिकस्कन्धेन स्पात् व्याप्तः स्यात् न व्याप्तः कथम् ? कदाचित् व्याप्तत्व कदाचिदव्यातत्वमिति, अत्रोच्यते, यदा वायुकायिकस्कन्धापेक्षया अनन्तप्रदेशिकः स्कन्धो महान् भवति तदा वायुमेहताऽनन्तमदेशिकस्कन्धेन व्याप्यते यदा तु वायापेक्षया असौ अनन्तप्रदेशिको महान् न भवति किन्तु अल्पीयानेव भवति तदा अनन्तमदेशिकस्कन्धेन वायुकायो न व्याप्तो भवति इति अपेक्षावादमाश्रित्य स्याद् व्याप्तः स्याद् अव्याप्त इति कथितम् । 'वत्थी णं भंते ! वाउकारणं फुडे' वस्तिः खलु भदन्त ! वायुकायेन स्पृष्टः 'वाउयाए वत्थिणा फुडे' वायुकायो वा वस्तिना स्पृष्टः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'वस्थी वाउकारणं फुडे' वस्तिः हतिः 'मशक' इति लोकप्रसिद्धः वायुकायेन स्पृष्टो व्याप्तः वायुना सामस्त्येन और नहीं भी होता है । तात्पर्य इसका ऐसा है कि जब अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध सूक्ष्म होता है तब तो वह वायुकाय के द्वारा व्याप्त हो जाता है। परन्तु जब वायुकायिक रूप स्कन्ध अनन्तपदेशिक स्कन्ध की अपेक्षा महान् नहीं होता है प्रत्युत अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध ही महान रहता है तब वह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध द्वारा व्याप्त हो जाता है। इस प्रकार से अपेक्षावाद को आश्रित करके 'सिय फुडे सिय णो फुडे' ऐसा कहा गया है। 'वस्थी णं भंते ! वाउकाएणं फुडे' हे भदन्त ! वस्ती. मशक वायुकाय से स्पृष्ट होता है ? या 'वाउयाए वस्थिणा फुडे' वायुकाय मशक से स्पृष्ट होता है उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! वत्थी वायु: कारणं फुडे' हे गौतम! मशक वायुकाय से स्पृष्ट होता है। क्योंकि चायकाय के द्वारा उसके जितने भी विवर होते हैं, वे सब के सब કે—જ્યારે અનંત પ્રદેશી કંધ સૂક્ષ્મ હોય છે, ત્યારે તે વાયુકાયથી વ્યાપ્ત થઈ જાય છે. પણ જ્યારે વાયુકાયિકરૂપ સકધ અનંત પ્રદેશી સ્કધથી મહાન હોતા નથી પરંતુ અનંત પ્રદેશ સ્કંધ જ મહાન રહે છે, ત્યારે તે અનંત મદેશી સ્કંધ દ્વારા વ્યાપ્ત થઈ જાય છે. અપ્રમાણેની અપેક્ષાવાદને આશ્રય शन "स्याद् व्याप्तः स्याद् अव्याप्तः" सेम ४ामा न्यु छे. "वत्थी णं भंते ! वाउकाएणं फुडे" हे सगवन् परती-भश, वायुयथी स्पृष्ट थाय छ ? है “वाउकाए अस्थिणा फुडे" वायुय भशया व्याप्त थाय छे. या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु छ 3-"गोयमा! वत्थी वाउकाएणं फुडे" 3 गौतम! મશક વાયુકાયથી સ્પષ્ટ થાય છે. કેમ કે તેને જેટલા છિદ્રો છે, તે બધા જ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩
SR No.006327
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages970
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size58 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy